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________________ प्रबन्ध मानव ने अपनी हत्या का कर रखा है। न केवल मानव अपितु सारे कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों और सूक्ष्म जीवों का भी अस्तित्व नहीं बच पायेगा। इन खतरनाक हथियारों का अनुमान आप हाइड्रोजन बम की मारक शक्ति से लगा सकते हैं। एक हाइड्रोजन बम के विस्फोट से इतनी अधिक उष्मा पैदा होती है कि जहाँ जिस स्थान पर यह विस्फोट हो, वहाँ और उसके हजारों मील आस-पास सभी मनुष्य वनस्पति व जलराशि का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। विज्ञान के अनुसार सूर्य पृथ्वी से लगभग नौ करोड़ मील की दूरी पर स्थित है। लेकिन इतनी दूरी से भी वह हमें तपा देता है, आकुल-व्याकुल कर देता है। गर्मियों में तो हाल ही बुरा हो जाता है। सूर्य जैसी गर्मी एक इस हाइड्रोजन बम में है। गर्मियों जरा सा सूर्य नीचे आता है तो मकानों आदि में आग लगनी प्रारम्भ हो जाती है, हवाई जहाजों में अग्निकाण्ड होने लगते हैं। सौ डिग्री ताप के बाद पानी भाप बन कर उड़ने लगता है, यदि उसमें अँगुली डालें तो खाल अँगुली से अलग हो जाये। जबकि सौ डिग्री कोई विशेष गर्मी नहीं है, सूर्य की गर्मी की अपेक्षा बहुत कम है। पन्द्रह सौ डिग्री पर लोहा पिघल जाता है, पच्चीस सौ डिग्री ताप पर लोहा भी भाप बन कर उड़ने लगता है। किन्तु यह ताप भी सूर्य के ताप से बहुत कम है। एक हाइड्रोजन बम में दस करोड़ डिग्री का ताप संग्रहीत रहता है जो चालीस हजार वर्ग मील तक अपना असर दिखाता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्सटाइन से एक बार एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि - "विज्ञानाचार्य आप इतने बड़े वैज्ञानिक हैं, क्या यह बता सकते हैं कि आज जो संसार में इतने दुःख और अशान्ति है, उसे दूर करने का क्या उपाय है?" विज्ञानाचार्य कहते हैं कि - "हाँ है, और केवल एक ही उपाय है कि अच्छे मनुष्य उत्पन्न किये जायें"। आइन्सटाइन कोई साधारण वैज्ञानिक नहीं थे। उन्होंने यदि कहा कि श्रेष्ठ मनुष्य, अच्छे मनुष्य उत्पन्न करने से सुख और शान्ति उत्पन्न होगी तो क्यों कहा, यह क्यों नहीं कहा कि विज्ञान के अमुक आविष्कार से सुख होगा, अमुक आविष्कार से शान्ति होगी? केवल इसलिए कि विज्ञान के जितने भी आविष्कार हुए हैं, उससे मनुष्य को वास्तविक सुख नहीं मिला, कुछ आराम मिला अवश्य है, किन्तु वह भी क्षणिक ही है, स्थायी नहीं। विज्ञान ने मनुष्य बनाना नहीं सिखाया। सिखाया होता तो ये लड़ाईयाँ, ये झगड़े और ये युद्ध नहीं होते। यह घृणा न होती, यह अशान्ति न होती । वर्तमान परिस्थितियों का सामना केवल एक ही शक्ति कर सकती है और वह शक्ति है- "अहिंसा" जिसका भौतिकवाद से सम्बन्ध न होकर आध्यात्म से है । हमारे हाथ में हिंसा की शक्ति विज्ञान ने दी है, जबकि अहिंसा की शक्ति आध्यात्म ने दी है। जिन लोगों ने हाइड्रोजन म व न्यूक्लियर बम बनाएँ हैं, उनसे पूछकर देखो कि उनके ये बमं क्या किसी निःसहाय के आँसू पोंछ सकते हैं? क्या वे सर्दी में ठिठुरते किसी निर्धन वृद्ध के लिए आश्रय बन सकते हैं, 285
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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