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सुख-शान्ति विज्ञान से नहीं अहिंसा से ही संभव है-आज के इस वैज्ञानिक युग में प्रत्येक व्यक्ति एक ही प्रश्न से आन्दोलित है कि-"विज्ञान वरदान है या अभिशाप", आज मनुष्य भौतिकता के शिखर पर खड़ा है, किन्तु साथ ही आत्म पतन की खाई में भी पड़ा हुआ है। मानव आज एक भयंकर स्थिति से गुजर रहा है। वह भय से आक्रान्त है कि न जाने कल मेरा हश्र क्या होगा, विज्ञान ने जितनी सुविधाएँ मनुष्य को प्रदान की हैं, वे सब शरीर और मन तक ही सीमित हैं। इससे आत्मा बलिष्ट नहीं हो सकती, तृप्त नहीं हो सकती। महावीर भगवान का युग आत्मतृप्ति का युग था। उस समय केवल एक ही योजना थी कि सच्चा मनुष्य कैसे बना जाऐ, विज्ञान की भी योजनाएँ हैं और इन योजनाओं के अनुसार बड़े-बड़े बाँध बनते हैं, धरती की सिंचाई करने के लिए नहरें बनती हैं, ताकि मरुस्थल भी हरे-भरे खेतों से, फसलों से लहलहा उठे। बडे-बडे कारखाने बनते हैं. जिससे देश में अधिक वस्त्र आदि तैयार हो सकें। यह सब उन्नति अच्छी है, बहुत अच्छी है, किन्तु यह सब जिसके लिए बनाते हैं, वह मनुष्य है कहां, मनुष्य को आदर्श मनुष्य कौन बनाएगा? माना आपने बहुत अच्छा उद्यान लगा लिया, कोठी-बँगला बना लिया, बगीचे में फूल भी खिल उठे, वृक्ष भी झूम उठे, पक्षी चहचहा उठे, मखमल जैसी घास पर चांदी जैसे फब्वारे के पास एक मेज भी लगा ली। इस पर भाँति-भाँति के खाने सजा दिये गये, परन्तु जिसके लिए यह सब किया गया वह है कहाँ, यदि वह कहीं हिंसा रूपी गन्दगी में पड़ा हुआ है, उसके बालों में बदबूदार कीचड़ भरा हुआ है, यदि वह चोट के कारण खड़ा नहीं हो पाता, बैठ नहीं पाता, मुख खोल नहीं पाता, यदि उसकी भूख समाप्त हो गयी है तो यह सब ऐशो-आराम किसके लिए।
यदि मानव ही मानव न बना तो इस कला-कौशल निर्माण और उन्नति का क्या करोगे? आज अमेरिका, रूस आदि हमें धन देते हैं कि अपने देश में नई-नई योजनाएँ बनाओ, आगे बढ़ो। दोनों देश धन औरों को भी देते हैं। साथ ही साथ हाइड्रोजन बम और न्युक्लियर बम भी बनाते हैं जिसके प्रयोग से एक ही क्षण में यह सब कुछ समाप्त हो जायेगा। यह उपहासास्पद नहीं तो
और क्या है? यह मनुष्य की सहायता नहीं, वरन् बली के बकरे पालना है। आज इस संसार में महल बनाये जाते हैं, बाजार सँवारे जाते हैं, नये-नये नगर बसाये जाते हैं परन्तु मनुष्य बिगाड़े जाते हैं। __ पिछले दो महायुद्धों में करोड़ों मनुष्यों की हत्याएँ हुई हैं। आज भी सामूहिक हत्याएँ किसी न किसी रूप में हो रही हैं।
वर्तमान युग में कुछ देशों ने इतने अधिक घातक हथियार संग्रहीत कर लिए हैं कि यदि उनका प्रयोग किया जाये तो मारने के लिए मनुष्य ही नहीं बचेंगे। आज पूरे विश्व में मानव की जनसंख्या लगभग छळ अरब है और मारने की क्षमता इस संख्या से कई गुना अधिक है। इतना
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