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________________ तोबा करता हूँ और वह दानव से मानव बन जाता है। हिरणी पुनः अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए चली जाती है। यह बात जानने योग्य है कि जब मुसलमान लोग हज को जाते हैं तो अपने साथ एक रूमाल भी ले जाते हैं, कहीं कोई मक्खी आदि न मर जाए, उसको रूमाल से हटाते हैं। साथ ही अपने साथ पशु-पक्षी के लिए अनाज भी ले जाते हैं। रास्ते में यदि कोई जीव मर जाये तो ऐसा समझते हैं कि हज मंजूर नहीं हुई। 3. सिक्खधर्म में-गुरुनानक देव ने कहा था कि-माँस राक्षसों का भोजन है। वे लिखते हैं कि सब राक्षस को नाम जपायो, अमिष खान तिन्हें तजवायो। नीम घातकी बान बिसाही, सत्संग करे है सुखारी।। सब राक्षस जैसे क्रूर पुरुषों को प्रभु का नाम जपाया, उससे उन्होंने माँस खाने की आदत छोड़ दी और उन राक्षस पुरुषों ने जीवों का वध करने की भी आदत छोड दी। सच कहा है-महात्माओं की संगति सुख देने वाली होती है। आगे गुरुनानक कहते हैं कि-माँसाहारी के हाथ का खाने-पीने में भी दोष है। कहते हैं कि यो नहीं तुमको खाये कदापि, हो सबके संतापी, प्रथम तजो अमिष का खाना, करो जास हित जीवन तजो तामसी वृत्ति दुःखारी, करो भकति करतार तुम्हारी। हम तुम्हारे यहाँ कदापि भोजन नहीं करेंगे, क्योंकि तुम सब जीवों को दुःख देने वाले हो। सबसे पहले तुम माँस खाना छोड़ो, जिस कारण तुम्हारा जीवन नष्ट हो रहा है। दुःख देने वाली तामसी प्रवृत्ति को छोड़कर सुखकारी प्रभु की भक्ति में लग जाओ। 4. ईसाईधर्म में-ईसाईयों की धर्म पुस्तक "बाइबिल' में ऐसा लिखा है कि-सबसे बड़ा धर्म-"नो शॉट-नो किल" किसी भी प्राणी की हत्या मत करो। इस प्रकार ईसाईधर्म में भी अहिंसा को ही प्रमुखता दी गयी है। 5. आर्यसमाज में-महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि माँस का प्रचार करने वाले सब राक्षस के समान हैं। वेदों में माँस का कहीं भी उल्लेख नहीं है। शराबी और माँसाहारी के हाथ का खाने-पीने, में भी शराब-माँस आदि का दोष लगता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि संसार के विभिन्न मतों में अहिंसा का पर्याप्त अवस्था में पालन होता है। 283
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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