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________________ उपर्युक्त दो श्लोकों में माँस खाने वालों को निर्दयी राक्षस से कम नहीं कहा गया है, अतः दूसरे शब्दों में अहिंसा की प्रशंसा ही की गयी है। अहिंसा को परमधर्म बताते हुए कहते हैं कि अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परो दमः। अहिंसा परमं दानमहिंसा परमं तपः॥ महाभारत-अनुशासन पर्व, अ. 116 अहिंसा परमधर्म है, अहिंसा परम संयम है, अहिंसा परम दान है, और अहिंसा ही परम तपस्या है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दूधर्म में अहिंसा पर पर्याप्त जोर दिया जाता है। अहिंसा का मूल दया है और दया के सन्दर्भ में महाभारत का निम्न श्लोक ध्यातव्य है सर्व वेदान्त तत्कुर्यु: सर्वे यज्ञाश्च भारत। सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च यत्कुलानि प्राणिणांदया। महाभारत शान्ति पथ-प्रथम पाठ, हे अर्जुन! जो फल प्राणियों पर दया करने से प्राप्त होता है, वह फल न तो वेद से और न समस्त यज्ञों को करने से, और न किसी तीर्थ वन्दना अथवा स्नान से ही प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिन्दूधर्म में अहिंसा, दया ही प्रधान है, यहाँ पर अहिंसा का पर्याप्त पालन होता है। इस्लामधर्म में-"विस्मिल्लाह हिर मान निर रहीम"-इस प्रकार इनके मुख्य ग्रंथ "कुरान शरीफ' के प्रारम्भ में मंगलाचरण करते हुए खुदा का विशेषण "रहीम" अर्थात् सब पर रहम करने वाला लिखा है और बाद में सब जीवात्माओं पर रहम का उपदेश दिया है। गहराई से यदि देखा जाये तो इस्लामधर्म में भी अहिंसा का पर्याप्त पालन करने का उपदेश दिया जाता है। इस तथ्य के पक्ष में निम्न दो दृष्टान्त उल्लेखनीय हैं। हज यहीं एक फकीर हज करने के लिए काबा की यात्रा को जाता है। रास्ते में उसे एक घायल कुत्ता मिलता है। कुत्ता पीड़ा से चिल्ला रहा है। उस पर मोटर गाड़ी ने जोर से टक्कर मार दी थी। फकीर ने विचार किया कि कुत्ता तो गन्दा होता है अतः इसको हाथ नहीं लगाना चाहिए। किन्तु अंतरंग में उसका रहम उमड़ रहा था। अतः फकीर कुत्ते को उठाता है और एक कुएँ के पास - 281
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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