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का भूखा खूखार शेर भी अहिंसक बन जाता है। बाद में राजा दीवान की यह अहिंसा देख कर बहुत प्रभावित होते हैं और दीवान जी सम्बन्धित एक पूर्व की घटना में खो जाते हैं।
पूर्व की घटना-एक बार राजा शिकार के लिए जंगल जाता है, साथ में दीवान जी को भी उनकी इच्छा के विरुद्ध ले जाता है। जंगल में हिरणों का एक झुंड शिकारी राजा को देख कर भागने लगता है। तब साथ में दीवान जी यह दृश्य देखकर कहते हैं कि हे हिरणो! तुम सब रुक जाओ। यह सुनते ही हिरणों का झुंड रुक जाता है। राजा को बहुत आश्चर्य होता है, फिर वे इसका कारण पछते हैं, दीवान जी कहते हैं कि-"जब रक्षक ही भक्षक बने तो फिर भागने से क्या लाभ, यह बात हिरणों के झुंड ने मेरी समझ ली, इसलिए झुंड रुक गया"। राजा यह सुनकर दीवान के पैरों में पड़ जाता है और फिर कभी शिकार न करने की प्रतिज्ञा कर लेता है।
विभिन्न धर्मों में अहिंसा यह सर्वविदित तथ्य है कि अहिंसा संसार के सभी धर्मों में पायी जाती है, समानरूप से सभी धर्म हिंसा को त्याज्य मानते हैं। यह अलग बात है कि आज इन विभिन्न धर्मों में कुछ विकृतियाँ आ जाने के कारण अहिंसा का पालन कुछ सीमा तक दृष्टिगोचर नहीं होता किन्तु मूल में इनका आधार अहिंसा ही है। कुछ निम्न तथ्य संसार के मुख्य धर्मों के सन्दर्भ दृष्टव्य हैं1. हिन्दू धर्म में-हिन्दू धर्म सर्वत्र अहिंसा धर्म की प्रशंसा की गयी है। माँस न खाने के बहुत लाभ बताये गये हैं। महाभारत में यधिष्ठिर कहते हैं कि
इमे वै मानवः लोके नृशंसा माँसगृद्धिनः। विसृज्य विविधान् भक्ष्यान् महारक्षोगण इव॥
(महाभारत-अनुशासन पर्व-अ. 116/1) युधिष्ठिर कहते हैं-पितामह! बड़े खेद की बात है कि संसार के ये निर्दयी मनुष्य अच्छे-अच्छे खाद्य पदार्थो का परित्याग करके निर्दयी राक्षसों के समान माँस का भक्षण करना चाहते हैं। युधिष्ठिर आगे कहते हैं कि
अपूपान् विविधाकाराशाकानि विविधानि च। खाण्डवान् रसयोगात्र तथेच्छन्ति यथाऽऽमिषम्॥
(महाभारत-अनुशासन पर्व-अ 116/2) मांसाहारी भाँति-भाँति के मालपूओं, नाना प्रकार के शाकों तथा रसीली मिठाईयों की भी वैसी इच्छा नहीं रखते, जैसी रुचि माँस के लिए रखते हैं।
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