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________________ चण्डाल ने चतुर्दशी के दिन "फाँसी नहीं देना अर्थात् जीव हिंसा त्याग' का नियम पालन किया और अन्त समय में स्वर्ग को प्राप्त किया। इस प्रकार हिंसा का त्याग करना चाहिए और अहिंसा का जीवन पर्यंत पालन करना चाहिए। प्राण भी अगर जाते हों तो अहिंसा नहीं छोड़नी चाहिए। इस संदर्भ में दृष्टव्य है अहिंसक शेर जयपुर के दीवान अमरचन्द बहुत दानी तथा परोपकारी तो थे ही साथ ही अहिंसा के पुजारी भी माने जाते थे। एक बार वहाँ के राजा ने इनकी अहिंसा की परीक्षा लेने की योजना बनाई। योजना के अनुसार वह दीवान जी से कहते हैं कि-"दीवान जी, मैं कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ, अतः मेरे इस पालतू शेर की देखभाल करने की जिममेदारी आपकी है। इसके खाने-पीने का ध्यान रखना।" दीवान साहब आना-कानी करते हैं पर राजा को तो जैनत्व की, अहिंसा की परीक्षा करनी थी। अत: उनकी एक न चलने दी और शेर के खाने-पीने की व्यवस्था उन पर छोड़कर चले गये। दीवान जी, पूर्ण शाकाहारी, पूर्ण अहिंसक थे। वे शेर के सामने वही रखते हैं जो स्वयं खाते हैं, अर्थात् दूध और रोटी। माँस भक्षी शेर उस ओर देखता तक नहीं। अनेक प्रयत्न करने पर भी दीवान साहब सफल नहीं होते। दूसरे दिन फिर वही दूध-रोटियाँ लेकर सिंह के सामने पहुँचते हैं। सिंह दो दिन का भूखा था। उन्हें देख कर जोर से दहाड़ने लगा। आज भी दीवान जी का प्रयास व्यर्थ चला जाता है। शेर ने कुछ नहीं खाया। यह देख दीवान जी बहुत दुखी होते हैं। जानते हैं न तो शेर कुछ खा रहा, उधर राजा भी कुपित होंगे। राजा वापिस आने पर कहेंगे-तुमने मेरे शेर को भूखा मार डाला। दु:खी मन से रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे सारी रात सोच-विचार में निकाल देते हैं आज तीसरा दिन हैं, उठते हैं और वही शाकाहारी भोजन लेकर पुनः शेर के पास पहुँच जाते हैं। आज शेर तीन दिन का भूखा था; और भूखे आदमी को शेर की उपमा दी जाती है अत: उसके सामने जाना भी खतरे से खाली नहीं होता। दीवान साहब शेर के पिंजडे के पास जाते हैं और पिंजड़े का द्वार खोल देते हैं। दूध और रोटी लेकर पिंजरे के भीतर शेर के सामने पहुंच कर कहते हैं-"हे सिंह! यदि तुम्हें ये मेरा भोजन दूध और रोटी नहीं भाती तो तुम मेरा शरीर खाकर अपनी भूख शान्त कर लो।" इतना कहकर दीवान साहब उस शेर के सामने आँखें बन्द करके लेट जाते हैं और णमोकार मंत्र का जाप करने लगते हैं। बहुत देर हो जाती है, शेर दीवान जी को कुछ नहीं कहता। आँखें खोलकर देखते हैं शेर चुपचाप रोटियाँ ही खा रहा है। इससे सिद्ध होता है? अहिंसा में अपूर्व शक्ति भरी है, इस अहिंसा के प्रभाव से तीन दिन - 279
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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