SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाद उन्हें लड़के का मोह सताता है। सेठ जी मिलने के लिए घर आने का मन बनाते हैं। लौटते हुए किसी शहर की धर्मशाला में ठहर जाते हैं। उधर लडका भी बड़ा और समझदार हो जाता है। वह भी अपने पिताजी को खोजने निकल पड़ता है। दैवयोग से वह भी उसी धर्मशाला में ठहर जाता है जिसमें उसके पिता जी ठहरे हुए हैं। होनहार बलवान होती है। रात को लड़के के पेट में तेज दर्द होता है। लड़का चिल्लाने लगता है। सेठ जी की नींद खराब हो जाती है, क्रोध में ऊपर से आवाज देते है- कौन कुतिया का पिल्ला रो रहा है, मैनेजर को बुला कर उसे कुछ रुपये दे दिये और कहते हैं कि इसे धर्मशाला से बाहर निकाल कर फेंक दो। मैनेजर ने लोभ में आकर सर्दियों की आधी रात के समय उस लड़के को सड़क पर डलवा दिया। बाहर भयंकर सर्दी थी। लड़के ने रात को ही प्राण दे दिये। सेठ सुबह उठकर घर पहुँचते हैं। लड़के को आवाज लगाते हैं, लड़के की माता जी आती हैं। हालचाल पूछा जाता है, फिर सेठ जी पूछते हैं लड़का कहाँ है, सेठानी ने कहा, लड़का तो आपको खोजने गया हुआ है। सेठ जी तुरंत वापिस हो जाते हैं। लड़के को खोजते-खोजते उसी धर्मशाला में पहुँच जाते हैं जहाँ वे स्वयं ठहरे थे। पता करते हैं कि क्या कोई लड़का रात यहाँ ठहरा था? मैनेजर कहता है कि-"हाँ एक लड़का ठहरा था, किन्तु उसे आपने पैसे देकर बाहर डलवाया था वही एक लड़का ठहरा था, वह तो उसी रात ठंड से मर गया। तब सेठ जी पता करते हैं कि वह लड़का कौन था। पता लगता कि यह लड़का तो स्वयं उनका प्यारा मुन्ना था। सेठ जी बिलख जाते हैं। अपना सिर पीटने लग जाते हैं, विक्षिप्त हो जाते हैं, किन्तु अब क्या हो, तो भैया देख लो, समझ लो अगर सेठ जी में दया होती तो उसे ये दिन देखने को नहीं मिलते। इसलिए दिल में हमेशा दया रखनी चाहिए। जहाँ दया होगी वहाँ अहिंसा का वास होगा। अहिंसा प्रत्येक धर्म में है। कृष्ण जी गायों को पालते थे। वे बड़ी रक्षा करते थे उनकी। आजकल गायों का युवावस्था में तो दूध पीते हैं, किन्तु बुढ़ापे में कसाई को बेच देते हैं। यह भी हिंसा ही तो है। इसी प्रकार मुलायम चमड़ा प्राप्त करने के लिए पहले पशुओं के छोटे बच्चो को गर्म पानी में खोलाया जाता है। फिर उनको निकाल कर पीटा जाता है। फिर उनका मुलायम चमड़ा उतार लिया जाता है। जिससे अनेक प्रकार के वस्त्र, जूते, बैल्ट आदि बनाये जाते हैं। उन्हें पहन कर शान से चलने वालो, जरा सोचो। क्या तुम महावीर भगवान् के अनुयायी कहलाने लायक हो, अपने नाम के आगे जैन लिखना भी तुम्हारे लिए पाप है। महावीर का संदेश शायद तुम्हें मालूम नहीं है, "जियो और जीने दो" यही तो कहा था उन्होंने। ये ही तो अहिंसा में गर्भित है। ___ शास्त्रों में कितने ही उदाहरण आते हैं अहिंसा पालन के। अहिंसा पालन मृगसैन धीवर ने किया। उसने मछली खाना छोड़ने का नियम पालते हुए शुभगति को प्राप्त किया। यमपाल 278
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy