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4. संकल्पी हिंसा - घात लगाकर संकल्प करके जब दूसरे के या अपने (आत्महत्या) प्राणों का वियोग किया जाता है, उसे संकल्पी हिंसा कहते हैं। इस हिंसा का गृहस्थ पूर्ण रूप से त्याग कर सकता है। पं. दौलतराम जी कहते हैं कि
रागादि भावहिंसा समेत, दर्वित त्रस थावर मरण खेत। जे क्रिया तिन्हें जानहुँ कुधर्म, तिन सरधै जीव लहै अशर्म ।।
(छहढाला 2)
जिन कार्यों के करने में राग-द्वेष पैदा होता हो जिसमें नियम से त्रस और स्थावरों की हिंसा करनी पड़ती हो उन्हें कुधर्म कहते हैं, ऐसे कुधर्म को धर्म मानने वाला जीव दुःख पाता है।
इस प्रकार जो लोग बिना सोचे-समझे जैनधर्म की अहिंसा को अव्यवहारिक कहते हैं, आशा है उनका भ्रम निवारण निम्न कथन से हो जायेगा
जैनधर्म के ऐतिहासिक कथानक ग्रंथों में जैन गृहस्थों और जैन साधुओं की सैकड़ों तापूर्वक अहिंसा पालन संबंधी गौरव गाथाएँ भरी पड़ी हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार उन जैन गृहस्थों व साधुओं ने अपने-अपने पदों के अनुरूप अहिंसा धर्म का गरिमापूर्ण पालन करते हुए धीरता - वीरता और गम्भीरता का परिचय दिया था । इतिहास का उज्ज्वल रत्न मौर्य समाज शिरोमणि चन्द्रगुप्त सम्राट, खारवेल और प्रतापी भामाशाह जैसे वीरों ने गृहस्थ के योग्य अहिंसा धर्म का पालन करते हुए भी धीरता से आतताइयों से अपने देश, धर्म और समाज आदि की रक्षा करने में सदा ही प्रशंसनीय वीरता का परिचय दिया था। जो लोग भारतीय अहिंसा को भारत की पराधीनता का कारण कहते हैं, उन्हें चाहिए कि वे जरा भारतीय इतिहास के अवलोकन का कार्यभार स्वीकार करें, जिससे उन्हें ज्ञात हो जायेगा कि जिस समय भारत पराधीन बना, उस समय बारहवीं शताब्दी से लेकर पन्द्रहवीं शताब्दी तक भारतीय नरेशों ने लगातार विदेशी आक्रमणकारियों का वीरता के साथ मुकाबला किया और उन्हें पराजित करते हुए देश की पूर्णरूप से रक्षा की, किन्तु अन्त में राजाओं की आपसी फूट, स्वार्थपरता व बिखरी शक्ति के कारण ही भारत पराधीन बना।
एक बार ग्वालियर की महारानी ने आचार्य विद्यानन्द जी से एक प्रश्न पूछा कि - "मुझे जैनों की सब बातें समझ में आती हैं, किन्तु यह अहिंसा समझ में नहीं आती, यह है क्या, " तब उन्होंने उत्तर दिया- " दुनिया में सब कार्य अहिंसा के लिए ही हैं, हिंसा के लिए कुछ दिखता ही नहीं। चौराहे पर लालबत्ती है-वह अहिंसा के लिए है, वह कहती है आगे बढ़ने पर आपकी हिंसा हो जायेगी, आप रुक जाइये । यातायात पुलिस भी अहिंसा के लिए तत्पर है कि कहीं दो गाड़ियाँ आपस में टकरा न जाएँ, मजिस्ट्रेट अहिंसा के लिए, पुलिस अहिंसा के लिए, डॉक्टर की
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