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घोर उपसर्ग मध्य प्रदेश में बड़वानी के निकट आचार्य शान्तिसागर महाराज (छाणी) का मंगल विहार हो रहा था। वहाँ पर कुछ विरोधी तत्त्वों ने दिगम्बर मुनिराजों का विरोध किया। परिणाम स्वरूप विहार को रोक दिया गया। ऐसी परिस्थितियों में आचार्यश्री सड़क पर ही पद्मासन लगा ध्यान मग्न हो गये। कुछ अनुयाइयों ने आचार्यश्री को घेरे में ले रखा था, किन्त विरोधियों के सापेक्ष अनुयायी अपर्याप्त थे। ___ असामाजिक तत्त्व अब एक नई चाल चलते हुए एक ट्रक को भीड़ में भेजते हैं, और इनका नेता आदेश देता है कि-"ये ऐसे नहीं मानेंगे, ट्रक को मुनिराज पर चढ़ा दिया जावे"। ट्रक आता है, तेजी से मुनिराज की ओर बढ़ता है, किन्तु यह देख सभी आश्चर्य चकित हो जाते हैं कि जैसे ही ट्रक मुनिराज के निकट आया तो ट्रक का पहिया निकल जाता है, ट्रक पलट जाता है और इस प्रकार ट्रक मुनिराज को छू भी नहीं पाता। चमत्कार की घटना जंगल में आग की तरह चारों ओर फैल जाती है। सभी विरोधी सहम जाते हैं। विरोधियों का नेता आता है और मुनिराज के चरणों में नतमस्तक हो जाता है। क्षमा मांगता है, पश्चाताप करता है। मुनिराज ध्यान से बाहर आते हैं, सभी को क्षमा प्रदान करते हैं और अपना मंगल आशीर्वाद देते हैं। सभी विरोधी भव्यता से मंगल विहार कराते हैं।
इस प्रकार आज भी दिगम्बर मुनिराजों में सम्यक् तपस्या के बल पर चमत्कारिक शक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। जिससे असामाजिक तत्त्व बहुत प्रभावित होता हुआ अपने अवगुणों को सहज ही दूर कर लेता है। यह दृष्टान्त यह भी सिद्ध करता है कि वीतरागी दिगम्बर सन्त सदैव शत्रु-मित्र में कोई भेद नहीं करते। सभी को समान दृष्टि से देखते हैं। __वीतरागी साधु अपने पास कोई परिग्रह नहीं रखते हैं, अत: 24 प्रकार के परिग्रहों के त्यागी होने के कारण, एक लंगोटी मात्र भी नहीं रखते। जहाँ तिल-तुष मात्र भी परिग्रह है वहां सुख-शान्ति नहीं रह सकती। इस बात को स्पष्ट करने के लिए निम्न दृष्टान्त समझना होगा
लंगोटी का दुःख कहीं पर एक महात्मा जी रहते थे। उन्होंने दो लंगोटी अपने पास रखी थीं। एक पहन लेते और एक को धोकर सुखा देते थे। एक बार एक चूहे ने एक लंगोटी काट दी। अब महात्मा जी को चिंता होती है कि क्या करें, तब विचार करते हैं कि एक बिल्ली पाल ली जाये, जिससे चूहे नुकसान न करने पायें। साधु महात्मा ने बिल्ली पाल ली। अब चिन्ता बनती है कि बिल्ली के लिए
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