________________
(जिन-वन्दना जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर है। जो विपुल विनों बीच में भी, ध्यान धारण-धीर है।। जो तरण-तारण, भव-निवारण, भव जलधि के तीर है। वे वंदनीय जिनेश तीर्थङ्कर स्वयं महावीर है॥१॥ जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आत्मध्यान में। जिनके विराट, विशाल निर्मल, अचल केवलज्ञान में। युगपद् विशद सकलार्थ झलके, ध्वनित हों व्याख्यान में वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में॥२॥ जिनका परम पावन चरित, जल निधि समान अपार है। जिनके गुणों के कथन में गणधर न पावै पार है। बस वीतराग-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है। उन सर्वदर्शी सन्मति को, वंदना शतबार है॥३॥ जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। करता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है॥४॥ आतम बने परमात्मा, हो शांति सारे देश में। है देशना सर्वोदयी, महावीर के सन्देश में।
जिनवाणी: स्तुति वाणी सरस्वती तू जिनदेव की दुलारी, स्याद्वाद नामतेरा ऋषियों की प्राण प्यारी।। सुर नर नरेन्द्र सब ही तेरी सुकीर्ति गावें, तुम भक्ति में मगन हो तो भी न पार पावें।। इस गाढ मोहमद में हमको नहीं सहाता, अपना स्वरूप भी तो नहीं मात याद आता। ये कर्म शत्रु जननी हमको सदा सताते, गतिचार माहिं हमको नित दुःख दे रुलाते।। तेरी कृपा से माँ कुछ हम शांति लाभ करले, तुम दत्त ज्ञान बल से निज पर पिछान करले।। हे मात तुम शरण में हम शीश को झुकावें, दो ज्ञान दान हमको जब लो न मोक्ष पावें।। वाणी सरस्वती तू जिनदेव की दुलारी, स्याद्वाद नाम तेरा ऋषियों की प्राण प्यारी।।