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छेदोपस्थापना चारित्र - आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती कहते हैं किछेतूण य च परियायं पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं । पंचजमे धम्मे सो छेदोवट्ठावगो जीवो ॥
- गोम्मटसार जीवकाण्ड 47
प्रथम सामायिक चारित्र को धारण कर फिर उससे गिर जाने पर पुनः अपने आत्मा को व्रत धारणादि पाँच प्रकार के चारित्र धर्म में स्थापित करना छेदोपस्थापना चारित्र है। छेद करके अर्थात् प्रायश्चित का आचरण करके जिसका उपस्थापन होता है, उसे छेदोपस्थापना चारित्र कहते हैं। दूसरे शब्दों में अपने द्वारा किये गये दोष या प्रायश्चित निवारण करने के लिए पहले जो तप किया था, उसका उस दोष के अनुकूल छेदन करके पुनः निर्दोष संयम में स्थापित करना छेदोपस्थापना चारित्र कहलाता है । समता में शिथिलता के कारण ही दोष लगते हैं तथा समता धारण करने के उपरान्त ही निर्दोष सम्यग्चारित्र का पालन होना संभव है। राग-द्वेष के कारण ही सामायिक आदि चारित्र में दोष लगने लगते हैं, अन्यथा छेदोपस्थापना चारित्र की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। समता धारक कैसे होते हैं, इस बात को पं. दौलतराम जी इस प्रकार कहते हैं
अरि मित्र महल मसान कंचन, काँच निदंन थुति करन । अर्घावतारन, असि - प्रहारन, में सदा समता धरन ॥
- छहढाला छठी ढाल 6
मुनिराज शत्रु और मित्र को, महल और श्मशान को, सोना और काँच को, निन्दा और स्तुति को तथा पूजन करने वाले को और मारने वाले को हमेशा एक समान समझते हैं। इस प्रकार उनके राग-द्वेष का अभाव होता है। समता धारक मुनि कैसे होते हैं, यह बात निम्न दृष्टान्त से भी समझ में आ जाती है-
एक बार अकम्पनाचार्य 700 मुनियों के संघ सहित उज्जैन नगरी में पधारे, तब वहाँ दुष्ट मंत्रियों के साथ राजा उनकी वन्दना करने को जाता है। अवसर का विचार कर आचार्यश्री ने संघ को मौन धारण करने का आदेश दे दिया। दो मुनियों को, जो किसी कारणवश बाहर रह गये थे, उन्हें राजा की आज्ञा का ज्ञान नहीं हो पाया। ये दुष्ट मंत्री दो मुनियों से वाद-विवाद करते हैं और हार कर अपने आप को अपमानित महसूस करते हैं। ईर्ष्यावान मंत्री रात्री में मुनियों पर प्रहार करते हैं, किन्तु जैनधर्म का भक्त यक्षदेव उन्हें बचा लेता है। मंत्रियों के इस घोर अपराध की खबर जब राजा के पास पहुँची तो राजा मंत्रियों को अपने राज्य से निकाल देता है। कुछ समय बाद मुनिसंघ विहार करता हुआ हस्तिनापुर आता है और वे अपमानित हुए मंत्री भी हस्तिनापुर पहुँच कर राज्य कर्मचारी बन जाते हैं। ये मंत्री राजा को प्रसन्न करके राजा से 7 दिन का राज्य प्राप्त कर लेते हैं। अब ये पूरे संघ पर घोर उपसर्ग करते हैं। पूरे संघ को चारों तरफ से घेर लेते
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