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अतः ज्ञान की महिमा अनोखी है। ज्ञान हमें शान्ति प्रदान करता है और इसके अभाव में अशान्ति ही अशान्ति व्याप्त रहती है। इस बात को हम निम्न दृष्टान्त द्वारा भी अच्छी तरह से समझ सकते हैं
रज्जू में सांप किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे। बहुत धनवान थे। घर में पत्नी, पुत्र, पुत्री, माता-पिता, समाज में प्रतिष्ठा सब कुछ था। किसी बात की कोई कमी नहीं थी। इतना सब कुछ होते हुए भी वे अशान्त रहते थे। एक दिन बैठे-बैठे सोच रहे थे कि मुझे शान्ति क्यों नहीं मिल रही है? क्या करूं? निर्णय लेते हैं। कि मुनिराज के पास जाकर इसका समाधान लेना चाहिए। अगले दिन मुनिराज के पास जंगल में जाते हैं और कहते हैं कि महाराज! मेरे पास भगवान् का दिया सब कुछ है, किन्तु मेरे पास शान्ति नहीं है। यह आपके पास है, अतः आपसे शान्ति लेने आया हूँ। महाराज कहते हैं कि-"वह जो सामने कुटिया दिख रही है, उसके अन्दर एक कमण्डलु रखा है, जाओ उसे ले आओ" सेठ जी जाते हैं, कुटिया के अन्दर प्रवेश करते हैं। कमण्डलु को स्पर्श करते ही जोर से डर कर चिल्लाते हैं और बाहर भागकर आ जाते हैं। डरे हुए, सहमे हुए मुनिराज के पास आकर कहते हैं कि-"महाराज वहाँ पर बड़ा सर्प है'। मुनिराज यह सुन कुटिया में जाते हैं। सेठ जी उनके पीछे-पीछे चलते हैं। मुनिराज कमण्डलु उठाते हैं, और उसके पास पड़ी हुयी एक रस्सी उठाते हैं। सेठ जी से कहते हैं कि-"सेठ जी! यह तो रस्सी है, आप कहते थे साँप"। अब आगे उपदेश देते हैं कि इस घटना द्वारा मैं आपको शान्ति देना चाहता हूँ। जब तक आपने किसी वस्तु को भली-भांति जाना नहीं, समझा नहीं, तब तक ही आपके अन्दर अशान्ति रहती है, शान्ति का अंश भी आपके अन्दर अनुभव नहीं हो सकता। किन्तु जब आप वस्तु स्वरूप को भली-भांति समझ लेते हैं, कि सही क्या है और सही क्या नहीं है; रस्सी है यह , साँप नहीं, इस प्रकार का भ्रम जब मिट जाता है तब अशान्ति का भी अन्त हो जाता है। आपके अन्दर तब बिल्कुल भी अशान्ति नहीं रहेगी। सब खत्म हो जायेगी। इसके अभाव में आपके अन्दर अशान्ति ही अशान्ति रहेगी। इस प्रकार वस्तु के स्वभाव की यथार्थ पहिचान जब तक हमें नहीं होगी, तब तक अशान्ति ही रहेगी, और जब वस्तु के स्वभाव की यथार्थ पहचान हो जाती है तब शान्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। यह शान्ति ही परम् शान्ति को अर्थात् मोक्ष को प्राप्त कराने वाली होती है। आत्मा का स्वभाव ज्ञाता और दृष्टा है, अतः उसके स्वभाव को जानकर उसी में स्थिर हो जाओ, उसी में समा जाओ। वही धर्म है, और वही शान्ति प्राप्त करने का उपाय भी है। यह सुन सेठ जी शान्त चित्त हो अपने घर लौट आते हैं।
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