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________________ ले ली। वे एक मास का उपवास कर आतापन योग स्थापन करते हैं। इस तप के प्रताप से सात व्यन्तर देवों ने आकर कहा हमें आज्ञा दीजिए कि हम क्या करे? मुनिराज बोले आज कुछ नहीं, बाद में याद करेंगे। जब वशिष्ट मुनि मथुरा में आते हैं तब एक मास के उपवास सहित आतापन योग कर लेते हैं। अब मथुरापुरी के राजा उग्रसेन इन्हें देख भक्तिवश यह सोचते हैं कि मैं इन्हे आहार कराऊँगा। अत: नगर में घोषणा कर दी जाती है। इन मुनिराज को और कोई आहार न दे"। एक वशिष्ठ मुनि नगर में आते हैं, और वहाँ अग्नि उपद्रव देख अन्तराय जान लौट जाते हैं। फिर मासोपवास किया एवं फिर आहार के लिए नगर में आते हैं। अब हाथी का क्षोभ देख अन्तराय जान वापिस चले जाते हैं। फिर मासोपवास करते है। बाद में फिर नगर में आते हैं। इस बार राजा जरासिंध का एक पत्र उग्रसेन के पास आता है, जिस कारण वे व्यग्र हो जाते हैं, इस कारण मुनि का पड़गाहन नहीं कर पाते। मुनिराज फिर अन्तराय जान वापिस वन में चले जाते हैं। रास्ते में लोगों के वचन सुनते "राजा स्वयं मुनि को आहार दे नहीं' और अन्य देने वाले को भी न देने दे।" ऐसे वचन सुन राजा पर क्रोध कर मुनिराज ने निदान किया कि इस राजा को पुत्र होकर राजा का निग्रह कर मैं राज करूँ। इस तप का मेरे को यह फल लगे। इस प्रकार निदान कर वे मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अब ये मुनिराज मर कर राजा उग्रसेन की रानी पद्मावती द्वारा जन्म लेते हैं। बालक की क्रूर दृष्टि देखकर इन्हें एक सन्दूक में रख पूरे वृतान्त सहित यमुना नदी में बहा दिया जाता है। संयोग वश कौशाम्बी पुर में मंदोदरी नाम की महिला ने इनको प्राप्त किया और पुत्र बुद्धि से इनका लालन-पालन करने लगी। उसने इनका नाम कंस रखा। जब यह बालक कुछ बड़ा हुआ तो अन्य बालकों के साथ खेलते समय सब को दुख देने लगा। इस कारण मंदोदरी ने उलाहनों के दु:ख के कारण बालक को घर से निकाल दिया। अब यह बालक कंस, शौर्यपुर नामक शहर जाता है तथा वहाँ वसुदेव राजा के यहाँ सेवक बन कर रहने लगता है। कुछ समय बाद जरासिंध प्रति नारायण का पत्र आता है कि जो पोदनपुर के राजा सिंहरथ को बाँध लाये, उसके साथ आधे राज्य सहित पुत्री का विवाह कर देंगे। अब वसुदेव वहाँ कंस सहित जाकर युद्ध करके उस सिंहरथ राजा को बाँध लाता है और जरासिंध को सौप देता है। अब जरासिंध ने पुत्री सहित आधा राज्य वसुदेव को दे दिया, तब वसुदेव कहता है कि सिंहस्थ को कंस बाँध कर लाया है, यह उसको दो। जरासिंध राजा ने इसका कुल जानने के लिए मंदोदरी को बुलाकर कुल का निश्चय करके इसको अपनी पुत्री ब्याह दी। अब कंस ने मथुरा का राज्य लेकर पिता उग्रसेन राजा को तथा पदमावती माता को बंदी खाने में डाल दिया। इस प्रकार वशिष्ट मुनि ने निदान (इच्छा) से अशुभ में प्रवृत्ति की और सिद्धि को नहीं प्राप्त किया, वरन् दुःख को ही प्राप्त किया। यह सब अशुभ भाव का ही फल है। 218
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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