SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1. अस्नान, 2. अदन्त धावन, 3. आचेलक्य, 4. भूमिशयन, 5. 24 घण्टों में एक बार भोजन करना, 6. स्थिति भोजन, 7. केशलोंच, ये सात गुण भी मुनियों के माने गये हैं। क. अस्नान व्रत-जल्ल-मल्लादि से व्याप्त शरीर को स्वच्छ बनाने के लिए स्नान, उबटन, सुगंधित पदार्थ व नेत्रों में अंजन का त्याग करना, अस्नान व्रत है। ख. अवन्त धावन व्रत-अंगुली, नख, दातोन आदि के द्वारा दाँत के मल का शोधन नहीं करना. यह संयम की रक्षा रूप अदन्त धावन व्रत है। ग. आचेलक्य-ऊन, कपास, रेशम आदि किसी भी प्रकार के वस्त्रों से अपने शरीर को नहीं ढकना- आचेलक्य (नग्नता) नाम का मूलगुण होता है। घ. भूमिशयन-पिछली रात में आलस्य मिटाने के लिए एक करवट से धनुषा कार जीव जन्तु रहित जमीन पर या काष्ठ की पटरी पर थोडी सी नींद लेना, भूमिशयन नाम का मूलगुण है। ड.. दिन-रात में एक बार भोजन करना-सूर्य के उदय और अस्त के काल में से तीन-तीन ___ घड़ी छोड़कर दिन में एक बार भोजन करना, एकभुक्त नाम का मूलगुण है। च. स्थिति भोजन-दीवार आदि का सहारा न लेकर जीव जन्तु से रहित स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथ की अँजुली बनाकर थोड़ा भोजन करना, स्थितिभोजन नाम का मूलगुण है। छ. केशलुञ्च-उत्कृष्टतः दो माह मध्यम तीन माह, और जघन्य चार माह में उपवास पूर्वक दिन में हाथों से दाढ़ी, मूंछ और सिर के बाल उखाड़ना केशलोंच नामक मूलगुण कहलाता है। चारित्र के दूसरे भेद-एकदेश चारित्र के अन्तर्गत श्रावक को ग्यारह प्रतिमाएँ और 12 व्रतों (दूसरी प्रतिमा के अन्तर्गत) का निरतिचार पालन करना शुभ प्रवृत्ति हैं। (बारह व्रतों का वर्णन पूर्व में किया जा चुका है, वहाँ से जानना) शुभ में प्रवृत्ति से ही जीव परम्परा से मोक्ष का कारण बनता है, यह निम्न दृष्टान्तों से भी समझा जा सकता है। शिवकुमार मुनि इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में पुष्कलावती नामक एक देश है, उसके वीतशोकपुर नामक राज्य में महापद्म और वनमाला रानी के शिवकुमार नामक एक पुत्र हुआ। एक बार वह अपने मित्र के साथ वन क्रीड़ा करके अपने नगर को आ रहा था। तब वह मार्ग में देखता है कि कुछ लोग पूजा की सामग्री ले जा रहे हैं। तब वह अपने मित्र से पूछता है कि ये लोग क्या कर रहे 212
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy