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________________ मंगलाचरण जिनवन्दना प्रथम अध्याय: वक्ता एवं श्रोता द्वितीय अध्याय : पतित से पावन तृतीय अध्याय : मिथ्यात्व चतुर्थ अध्याय : सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन का प्रथम सोपान : देव, शास्त्र एवं गुरु का यथार्थ श्रद्धान सम्यग्दर्शन का द्वितीय सोपान : तत्त्वों का श्रद्धान सम्यग्दर्शन का तृतीय सोपान : स्व पर की यथार्थ श्रद्धा सम्यग्दर्शन का चतुर्थ सोपान : सम्यक्त्वाचरण पंचम अध्याय सात तत्त्व षष्ठ अध्याय: सम्यक्त्व सम्यक्त्व के पच्चीस दोष सम्यक्त्व का पहला अंग निशंक सम्यक्त्व का दूसरा अंग निकांक्ष सम्यक्त्व का तीसरा अंग निर्विचिकित्सा सम्यक्त्व का चतुर्थ अंग अमूढदृष्टि सम्यक्त्व का पंचम अंग उपगूहन सम्यक्त्व का षष्ठ अंग स्थितिकरण सम्यक्त्व का सप्तम अंग वात्सल्य सम्यक्त्व का अष्टम अंग प्रभावना सप्तम अध्याय सम्यग्ज्ञान सम्यग्ज्ञान का प्रथम सोपान सम्यग्ज्ञान का द्वितीय सोपान सम्यग्ज्ञान का तृतीय सोपान सम्यग्ज्ञान का चतुर्थ सोपान अनुक्रमणिका अष्टम अध्याय सम्यक्चारित्र : सम्यक्चारित्र का प्रथम सोपान अशुभ से निवृत्ति शुभ में प्रवृत्ति सम्यक्चारित्र का द्वितीय सोपान सम्यक्चारित्र का तृतीय सोपान सम्यक्चारित्र का चतुर्थ सोपान नवम अध्याय : दिगम्बर मुनिराज दशम अध्याय व्रत अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य अपरिग्रह एकादश अध्याय: षडावश्यक द्वादश अध्याय : राग से वैराग्य, वैराग्य से मुक्ति xxl 6954 , 5-6 7-16 17-37 38-44 45-73 51 57 62 67 11111111111111111111111111 1 1 1 1 1 2222222222883 3 226484 74-120 121-160 121 127 133 139 141 146 149 153 157 161-191 166 172 179 185 तो 192-256 200 248 257-269 270-329 271 304 314 330-425 426-436
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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