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________________ मङ्गलाचरण ओं नमः सिद्धेभ्यः ओं जय जय जय, नमोस्तु! नमोस्तु!! नमोस्तु!!! णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥ ओंकारं बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव, ओंकाराय नमो नमः ॥ १ ॥ अविरलशब्दघनौघप्रक्षालितसकलभूतलमलकला मुनिभिरुपासिततीर्था सरस्वती हरतु नो दुरितान्। अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥2॥ ॥ श्री परमगुरवे नमः, परम्पराचार्यगुरवे नमः ॥ सकलकलुषविध्वसकं, श्रेयसां परिवर्धक, धर्मसम्बन्धकं भव्यजीवमनः प्रतिबोधकारकमिदं शास्त्रं श्री .... नामधेयम् । अस्य मूलग्रन्थकर्तारः श्रीसर्वज्ञदेवास्तदुत्तरग्रन्थकर्तारः श्रीगणधरदेवाः प्रतिगणधरदेवास्तेषां वचोनुसारमासाद्य श्री.... आचार्येण विरचितम् । श्रोतारः सावधानतया श्रृण्वन्तु । मङ्गलं भगवान् वीरो, मङ्गलं गौतमो गणी । मङ्गलं कुन्दकुन्दाद्यो, जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलम् ॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारकं । प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयतुशासनम् ॥ मङ्गलाचरण ‘“मङ्गल” और आचरण इन दो शब्दों की सार्थक युति है । मङ्गल में दो शब्द हैं 'मं' और 'गल' | 'मं' का अर्थ है विकृति (पाप, अहंकार आदि अन्य विकारी भाव) 'गल' का अर्थ है 'गलना' अथवा नष्ट होना, जिसके आचरण करने से अथवा जिसको जीवन में धारण करने से विकृतियों का समूह विगलित होता है, पाप नष्ट हो जाते हैं जो मुक्ति के लिए उत्साह, प्रेरणा और उमंग देता है वह मङ्गलाचरण है। सभी महान् ग्रन्थों का प्रारंभ मङ्गलाचरण से होता है जिससे वे ग्रन्थ श्रोताओं, रचनाकार एवं वक्ता सभी के जीवन पथ को मङ्गलमय करने में कारण बनें तथा भवसागर पार करने में सहायक हों। मङ्गलाचरण करते ही हमारा उपयोग
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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