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________________ में व्यवस्थित है, वह पूज्य आचार्य श्री की ही भाषा शैली में उनके ही प्रवचनों की लिपिबद्धता है, हम लोगों ने मात्र ग्रन्थ के बहिरङ्ग स्वरूप को ही संवारा है। वैचारिक साम्यता की किन्हीं बिन्दुओं पर हमारी अनिवार्यता नहीं है। आचार्य श्री ने हमें इस विषय में स्वतन्त्र रखा है तथा बार-बार यही आदेश दिया है कि उनकी विचारधारा और सिद्धान्तों को यथावत् ही रखना है। हम लोगों ने भी आचार्य श्री की आज्ञा का अक्षरश: पालन किया है। यह अवश्य है कि शुद्धिकरण के क्षणों में अपने दृष्टिपथ के साथ हम जब-जब पृष्ठों पर रहे हैं, आचार्य श्री के ज्ञान, चिन्तन, मनन और आचरण से अभिभूत हुए हैं। पूर्ण विश्वास है आचार्य श्री की तप:साधना की अन्तःप्रेरित दिव्य देशना से सभी उपकृत होंगे। हम उन सभी बंधुओं के अनुगृहीत हैं जिनकी उदार सहायता के बिना ग्रंथ का कार्य पूर्ण होना असंभव था। प्रारंभ से अंत तक सहयोगी बने रहे श्री मदन लाल जैन, गांधीनगर दिल्ली, श्री बी.डी. जैन, श्री रवि जैन, श्री डी.के. जैन, गाजियाबाद, श्री देवेन्द्रकुमार जैन, सर्राफ, मेरठ इस आयोजन से इतने अभिन्न हैं कि उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना मात्र औपचारिकता होगी। जिन परम पूज्य आचार्यों, विद्वानों के ग्रंथों का कृति को सुव्यवस्थित करने में सहयोग लिया गया है उनके प्रति हम नत - शीश हैं। दीप प्रिण्टर्स के प्रबन्धक श्री मनोहर लाल जैन तथा उनके कर्मचारियों का भी हम आभार प्रकट करते हैं जिनकी सहायता से ग्रंथ की छपाई इतनी साफ और सुन्दर हो सकी। पूर्ण सावधानी रखते हुए भी प्रमादवश कहीं सिद्धान्त, व्याकरण, वाक्य विन्यास एवं प्रूफ रीडिंग आदि से सम्बन्धित त्रुटिया रह गयी हों उन्हें सुधीजन हम लोगों को अल्पज्ञ समझकर क्षमा करेंगे तथा आवश्यक सुधारकर पढ़ने का कष्ट करेंगे। महावीर जयन्ती, 2003 XX डॉ नरेन्द्रकुमार जैन डॉ० नीलम जैन
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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