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________________ एक महिने में दो अष्टमी, दो चतुर्दशी इस प्रकार चारों पर्व के दिनों समस्त पापारम्भ का त्याग करके यथाविधि उपवास करना प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत है। 3. भोगोपभोगपरिमाण शिक्षाव्रत भोग और उपभोग नियम कर ममत निवारै । अपने काम में आने वाली भोग और उपभोग में आने वाली सामग्रियों में से कुछ समय के लिए और भी संकोच कर लेना, भोगोपभोगपरिमाण शिक्षाव्रत है। 4. अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत मुनि को भोजन देय, फेर निज करै आहारै । निर्ग्रन्थ मुनि आदि सत्पात्रों को आहार देने के पश्चात् स्वयं भोजन करने का संकल्प करना अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत कहलाता है। पं. दौलतराम जी कहते हैं बारह व्रत के अतीचार, पन-पन न लगावै । मरण-समय सन्यास धारि, तसु दोष नशावै ॥ यों श्रावक व्रत पाल, स्वर्ग सोलम उपजावै । तहँ तै चय नर जन्म पाय मुनि हवै शिव जावै ॥ पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये श्रावक के बारह व्रत होते हैं। इन व्रतों को जो यथोचित रीति से पालन करता है एवं प्रत्येक व्रत के पाँच-पाँच अतिचार जो तत्त्वार्थसूत्र में बताये हैं, उनको नहीं लगने देता है और मरने के समय में निरतिचार सन्यास पूर्वक मरण करता है वह जीव सोलहवें स्वर्ग में जाकर महाऋद्धिक देव होता है वहाँ से आकर मनुष्य भव प्राप्त करके मुनिलिंग धारण करके मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार यदि जैनकुल पाकर भी कोई श्रावक 12 व्रतों को नहीं पालता अर्थात् संयम को धारण नहीं करता तो उसका जीवन व्यर्थ है जैसा कि निम्न दृष्टान्त में दर्शाया है लाल की कीमत एक खेत में बल्ली गाड़ने के लिए एक गड्ढा खोदा गया। वहाँ से रत्नों का भरा हुआ एक कलश निकलता है। किसान यह जानकर बड़ा खुश हुआ कि अब मुझे पक्षियों को उड़ाने के लिए कंकड़-पत्थर इकट्ठे नहीं करने पड़ेंगे। किसान रत्नों की कीमत से अनभिज्ञ था। अतः वह उनको पक्षी उड़ाने में काम लेता और एक-एक करके फैंकता जाता, सब लाल पास की नदी में गिरते जाते। एक दिन एक लाल किसी तरह उसकी झोपड़ी के पास गिर जाता है तभी पत्नी रोटी लेकर आती है और उस लाल की चमक को देखकर बहुत खुश होती है, सोचती है, बच्चे इससे 198
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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