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________________ खेल-खेल लेंगे। अतः वह उसे उठाकर अपने घर ले जाती है और उसे अपने बच्चों को खेलने के लिए दे देती है। एक दिन नगर के सेठ ने बच्चों को लाल से खेलते देखा और विचारने लगा कि इनको यह किसने दिया होगा । उसने बच्चों की माता को आवाज लगाई और पूछा- बच्चे ये लाल कहां से लाये हैं, बच्चे की माँ बोली- यह पत्थरी खेत में पड़ी थी सोचा बच्चों के लिए सुन्दर रहेगी । अतः इसे मैं उठाकर यहाँ ले आई। आपके मतलब की हो तो ले जाइये। सेठ अणुव्रती थे बोले कीमत बताओ ऐसे नहीं लेंगे। बच्चों की माता बोली- कीमत कुछ नहीं है, यदि आप को कुछ देना है तो बच्चों को दो चार पैसों की कुछ चीज दिला दीजिए। सेठ जी बोले- ऐसे नहीं, किसी को हमारे साथ भेजो सेठ जी के साथ वह खाली हाथ चल देती है। सेठ जी अपने घर चलने से पहले उसे एक चादर अपने साथ ले चलने के लिए कहते हैं और अपने घर जाकर उस चादर को अशर्फियों से भर देते हैं और वह लाल अपने पास रख लेते हैं। किसान की पत्नी बहुत खुश होती है तथा अपनी झोपड़ी वापस आकर कुछ दिनों में एक अच्छी हवेली तैयार कर लेती है। किसान बहुत दिनों में घर आता था। किसान जब एक दिन वापस अपने घर आया तो यह देखकर चकित रह गया। अपनी पत्नी से पूछता है - यह किसने बनवाई है, किसकी है, पत्नी उत्तर देती है कि यह हवेली आपकी ही है। एक दिन एक पत्थरी खेत से उठाकर मैं ले आई थी, उसकी सेठ ने इतनी अशर्फियों दी हैं कि यह हवेली तैयार हो गई। यह सुनकर किसान सिर पीट-पीट कर रोने लगता है। ये तो मुझे बहुत सारी मिली थीं किन्तु मैंने तो इन्हें एक-एक करके सारी फैंक दीं। जिस प्रकार किसान ने लालों की कीमत नहीं समझ कर इन्हें यूँ ही फैंक दिया ठीक इसी प्रकार मनुष्य जीवन की अमूल्य घडियाँ भी व्यर्थ ही खो रहे हैं। सारांश यह है कि अपने जीवन के क्षणों को जानो, इनको असंयम में मत खोओ। संयम को जीवन में धारण करना चाहिए। सम्यक् चारित्र का दूसरा भेव सकलचारित्र पूर्ण संयम चारित्र मुनियों के होता है अर्थात् मुनिधर्म को ही सकल चारित्र नाम दिया गया है। आर्चाय कुन्दकुन्द देव प्रवचनसार में लिखते हैं वदसमिदिदियरोधो लोचावस्सयमचेलमण्हाणं । खिदिसयमदंतवणं ठिदिभोयणमेगभत्तं च ॥8॥ एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता । तेसु पमत्तो समणो छेदोवट्ठावगो होदि ॥१॥ 199
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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