SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर प्रमाद जल भूमि वृक्ष पावक न विराधे । असि धनु हल हिंसोपकरण नहिं दे जस लाघे ॥ राग द्वेष करतार कथा, कबहूँ न सुनी जै । औरहु अनरथ दंड, हेतु अघ तिन्है न कीजै । बिना प्रयोजन पापारंभ को अनर्थदण्ड कहते हैं, उससे दूर रहना अनर्थदण्ड विरितव्रत है; इसके निम्न भेद हैं 1. अपध्यान अनर्थदण्डविरति व्रत- किसी के धन का नाश हो जाने का, किसी की जीत का किसी की हार आदि का व्यर्थ ही मन में विचार नहीं करना, अपध्यान अनर्थदण्डविरति व्रत है। 2. पापोपदेश अनर्थदण्डविरति व्रत- जिस बात के कहने से लोग हिंसाजनक और खेती आदि करने में लग जायें और अनर्थ करने लगें ऐसे निरर्थक वचनों का पापोपदेश नहीं करना पापोपदेश अनर्थदण्डविरति व्रत है। 3. प्रमादचर्या अनर्थदण्डविरति व्रत-बिना कारण पानी गिराना, जमीन खोदना, हवा करता वृक्ष काटना और आग जलाना आदि का त्याग करना, प्रमादचर्या अनर्थदण्डविरति व्रत है। 4. हिंसादान अनर्थदण्डविरति व्रत- हिंसा के साधन, हिंसक, साँसी, बावरिया आदि नहीं देना, हिंसादान अनर्थदण्डविरति व्रत है। 5. दु:श्रुति अनर्थदण्डविरति व्रत- राग और द्वेष को बढ़ाने वाली कथा कहानियों को सुनने का त्याग करना, दुःश्रुति अनर्थदण्डविरति व्रत है। इसी प्रकार और भी जिन कार्यों के करने से बिना प्रयोजन पापारम्भ होता हो उन्हें भी त्याग करना चाहिए। इस प्रकार ये सब अनर्थदण्डविरति व्रत हैं। चार शिक्षा व्रतों का स्वरुप 1. सामायिक शिक्षाव्रत धर उर समता भाव, सदा सामायिक करिये। सुबह, शाम और दोपहर को यथा समय मन में समता लाकर परमात्मा का चिन्तन करना और अपनी आत्मा का चिन्तन करना सामायिक शिक्षाव्रत है। 2. प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत परव चतुष्टय माहिं, पाप तजि प्रोषध धरिये । 197
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy