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सकलचारित्र। देशचारित्र और सकलचारित्र की व्याख्या से पूर्व संयम को समझ लेना अपेक्षित है। धवला में लिखा है कि
सम्यक् यमो संयमः अर्थात् सम्यक् रूप से यम अर्थात् नियंत्रण या उपरम, संयम है। सम्यक् रूप से इन्द्रियों और मन के विषयों का उपरम संयम कहलाता है। वस्तुतः वीतरागता प्रकट करना ही सच्चा चारित्र है। संयम दो प्रकार का होता है-(अ) इन्द्रिय संयम (ब) प्राणी संयम। ___पांच इन्द्रियों और मन को विषयों से रोकना तथा उनका शमन करना इन्द्रिय संयम है। इसका संक्षिप्त विवरण निम्न है1. स्पर्शन इन्द्रिय संयम-शरीर को स्वाभाविक बनाये रखना, कृत्रिम साधनों से सुन्दर नहीं
बनाना। स्त्री अथवा पुरुष में आसक्ति न होना, गर्मी में कूलर या पंखा नहीं चलाना, सर्दी में हीटर नहीं लगाना आदि। स्पर्शन इन्द्रिय संयम कहलाता है। इसके विपरीत संयम नहीं
होता। यदि शरीर से तीव्र मोह होगा तो स्पर्शन इन्द्रिय संयम नहीं हो सकता। 2. रसना इन्द्रिय संयम-जिह्वा पर नियंत्रण रखना करना, रसना इन्द्रिय संयम कहलाता है।
यदि एक वस्तु की इच्छा घटाई और दूसरी वस्तु में बढ़ाई तो उसे रसना संयम नहीं कह
सकते। 3. घ्राण इन्द्रिय संयम-नाक से संबंधित सुगन्ध और दुर्गन्ध में राग-द्वेष नही करना। यदि
सुगन्ध को सूंघकर प्रसन्न होवे और दुर्गन्ध में खेद खिन्न होवे तो उसे घ्राण इन्द्रिय संयम नहीं कह सकते। सुगन्ध और दुर्गन्ध में एक समान रहना घ्राण इन्द्रिय संयम है। चक्ष इन्द्रिय संयम-आँख इन्द्रिय से संबंधित नाना प्रकार के दृश्य देखना, फिल्म, टेलीविजन आदि देखना, सभी के सुन्दर रूप को देखकर मोहित होना, कोठी, बंगले आदि की सन्दरता को देखकर उसमें राग करना चक्षु इन्द्रिय संयम नहीं कहलाता है। वस्तुतः
अच्छे बुरे दृश्यों में समान रहना चक्षु इन्द्रिय संयम कहलाता है। 5. कर्ण इन्द्रिय संयम-कान से संबंधित ध्वनि के अनुकूलता और प्रतिकूलता के आधार पर
क्रमश: राग एवं द्वेष करना कर्ण इन्द्रिय संयम नहीं है। ज्ञान के शब्दों को सुनकर उसमें
मनोयोग लगाना, जिन प्रणीत वाणी को सुनकर आत्मा में उतारना, आदि। कर्ण इन्द्रिय संयम है। 6. मन इन्द्रिय संयम-सबसे कठिन इन्द्रिय संयम मन का संयम होता है क्योंकि यह सभी
इन्द्रियों पर सवार रहता है। वह बहुत चंचल होता है। यदि इसके ऊपर नियंत्रण कर लिया
जाये तो कल्याण होने में देर नहीं लगती है। मन की दौड़ सबसे तेज होती है। 7. प्राणी संयम-पृथ्वीकाय आदि पाँच स्थावर जीवों एवं दो इन्द्रिय आदि त्रस जीवों के प्राणों
की रक्षा करना प्राणी संयम कहलाता है। जहाँ पर हिंसा होगी वहाँ पर संयम की विराधना होगी ही।
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