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दृष्टान्त-3. एक सेठ की हवेली में रंग-रोगन का कार्य चल रहा था। सायं काल थोडा सा लाल रंग बच गया। उसे लोटे में रखकर मिस्त्री ने सेठ की लड़की को दे दिया कि इसको सरक्षित स्थान पर रख दो, सुबह हम ले लेंगे। लड़की ने वह लोटा ले जाकर सेठ जी के पलंग के नीचे रख दिया सेठ जी व्यापार से देर से आये और पलंग पर सो गये। सुबह उठे और अंध 'रे में पानी का लोटा समझ कर रंग के लोटे को लेकर शौच करने चले गये शौच के बाद जब उठने लगे तो हाथों पर लाल रंग लगा देखकर खून समझ लिया और चिल्लाने लगे तथा असहाय होकर गिर पड़े। चार आदमियों ने सेठ जी को उठाकर चारपाई पर लिटाया वैद्य बुला लिए। इतने में कारीगरों ने आकर लड़की से रंग मांगा तब वहाँ वह लोटा नहीं मिला। लड़की ने कहापिताजी आपने रंग का लोटा इस्तेमाल कर लिया आपको कुछ नहीं हुआ है वह खून नहीं था इतना सुनते ही सेठ उठकर खड़ा हो गया और बोला बेटी! जल्दी मेरा टिफिन लाकर दो मुझे व्यापार पर जाना है देर हो रही है। बन्धुओं? यही दशा इस संसार में प्रत्येक प्राणी की हो रही है। मिथ्या भ्रान्ति में पड़ कर दु:खी हो रहा है। यथार्थ ज्ञान से ही दुःख से छुटकारा पा सकता है।
हर हरकत की मूल में, कारण सच्चा देख। बिन कारण संसार में, पत्ता हिले न एक॥ जैसा तेरा आचरण, फल वैसा ही होय। दुराचरण दुःख ही बढ़े, सदाचरण सुख होय॥ जो चाहे सुख ना घटे, होय दुःख का नाश। दासी बन तृष्णा रहे, बन मत तृष्णा-दास।। कुदरत का कानून है, इससे बचा न कोय। मैले मन दुखिया रहे, निर्मल सुखिया होय॥
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