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________________ आचार्य कुन्दकुन्द देव कहते हैं कि जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं च आसवं ते सिं। संवर णिज्जर बंधो मोक्खो य हवन्ति ते अडा। -पंचास्तिकाय 108 जीव और अजीव दो भाव अर्थात मल पदार्थ तथा उन दो के पण्य पाप आस्रव. संवर निर्जरा बंध और मोक्ष ये नौ पदार्थ हैं। दूसरे शब्दों में द्रव्य की अपेक्षा पदार्थ, क्षेत्र की अपेक्षा अस्तिकाय, काल की अपेक्षा द्रव्य हैं और भाव की अपेक्षा तत्त्व हैं। नौ पदार्थों की विवेचना करने से पूर्व छः द्रव्यों का संक्षिप्त वर्णन भी अपेक्षित है। द्रव्य किसे कहते हैं तथा उसके कितने और कौन से भेद होते हैं? यह यहां प्रस्तुत हैं आचार्य उमास्वामी तत्त्वार्थसत्र के पाँचवे अध्याय के 29वें सत्र में लिखते हैं कि 'सदद्र लक्षणम्' अर्थात् द्रव्य का लक्षण सत् है। सूत्र 30 में कहा गया है कि 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्, अर्थात् जो उत्पादव्ययध्रौव्य सहित हो वह सत् है। इस प्रकार जो सत् लक्षण वाला उत्पादव्यय और ध्रौव्य युक्त है उसे द्रव्य कहते हैं। ___ मुख्य रूप से द्रव्य दो प्रकार का होता है- (1) जीव द्रव्य और (2) अजीव द्रव्य। अजीव द्रव्य पाँच प्रकार का है। (1) पुद्गल (2) धर्म (3) अधर्म (4) आकाश और (5) काल। ___आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती के अनुसार जीव और अजीव के भेद से द्रव्य छह प्रकार के कहे गये हैं और काल द्रव्य को छोड़कर पाँच द्रव्य अस्तिकाय कहे जाते हैं। एवं छठभेय-मिदं जीवा-जीवप्प-भेददो दव्वं। उत्तं काल विजुत्तं, णादव्वा पंच अत्थिकाया दु॥ - द्रव्यसंग्रह, 23 काल द्रव्य अस्तिकाय नहीं हैं क्योंकि- काल द्रव्य केवल एक प्रदेशीय होता है इसलिए काल द्रव्य को अस्तिकाय नहीं कहा। पुनः प्रश्न उठता है कि पुद्गल परमाणु भी तो एक प्रदेश वाला होता है उसे अस्तिकाय क्यों कहा है, आचार्य कहते हैं कि कालाणु सदा एक प्रदेशीय ही रहता है परन्तु परमाणु स्कन्ध रूप में परिणत होकर बहुत प्रकार के प्रदेश वाला अर्थात् बहुप्रदेशीय हो जाता है परन्तु काल द्रव्य के अणु में बहु प्रदेशीय होने की योग्यता ही नहीं है। इसलिए पुद्गल परमाणु को अस्तिकाय कहा गया है। जैसा कि आचार्यों ने कहा है संति जदो तेणेदे, अस्थि-त्ति भणंति जिणवरा जह्मा। कायाइव बहु-देसा, तह्मा काया य अस्थिकाया य॥ -द्रव्यसंग्रह 24 - 173
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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