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________________ 39 भाग उपलब्ध हैं। ज्येष्ठ सुदी पंचमी श्रुतपंचमी के नाम से जानी जाती है इस दिन श्रुत की पूजा की जाती है। ____ आचार्य भद्रबाहु के शिष्य गुप्तिगुप्त, गुप्तिगुप्त के शिष्य माघनन्दि, माघनन्दि के शिष्य जिनचन्द्र आचार्य और आचार्य जिनचन्द्र के शिष्य आचार्य कुन्दकुन्द देव ने पाहुडों की रचना की जिनमें से आज 24 पाहुड उपलब्ध हैं। इनके पाँच ग्रन्थों- समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड को परमागम की संज्ञा प्राप्त है। इनको द्वितीय श्रुतस्कन्ध भी कहते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द देव के पाँच नाम वक्रगीव, ऐलाचार्य, गृद्धपिच्छ, पद्मनन्दि और कुन्दकुन्द प्रसिद्ध हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के बाद आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र की रचना दस अध्याय में की। इसी तत्त्वार्थसूत्र पर आचार्य समन्तभद्र ने गन्धहस्ति महाभाष्य लिखा। शास्त्रों की विनय पूर्वक स्वाध्याय करना ही श्रेयष्कर होता है केवल शब्द से कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं। कहा है कि जिनवाणी के बिना आह्लाद नहीं होता, नींव के बिना प्रासाद नहीं होता। धन के संग्रह में लीन रहने वालो, दर्शन मूल के बिना निर्वाण नहीं होता। जिनवाणी की विराधना से कोई गुणवान् नहीं होता, जिनशास्त्र को रौंदने से कोई पहलवान नहीं होता। सत् गुरुओं को दोष नहीं लगाओ, थोड़ा गहराई से सोचो, अनुचित बातें करने से कोई विद्वान् नहीं होता। जिनवाणी के जपने से मन का विकार जाता है, जिनवाणी के पढ़ने से सुख विस्तार पाता है। अन्तर मन से सोचो सन्त की भांति। जिनवाणी में रमने से भव का अन्त होता है। सम्यग्ज्ञान का दूसरा सोपान : नौ पदार्थों का जानना हमें पदार्थों को जानना चाहिए। प्रश्न उठता है कि पदार्थ क्या हैं- पद का अर्थ - पदार्थ अर्थात् सामान्य रूप से जो कुछ भी शब्द का ज्ञान है या शब्द का विषय है वह शब्द पदार्थ शब्द का वाच्य है। इस विश्व में जो जानने में आने वाला पदार्थ है वह समस्त द्रव्यमय, गुणमय और पर्यायमय है। अब प्रश्न उठता है कि ये कितने हैं % E 172
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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