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2. नयार्थ- व्यवहार-निश्चय रूपसे जानना। 3. मतार्थ- आगम का अर्थ करने की विधि में 'किस मत' का निराकरण करने के लिए यह
बात की गई है ऐसा निर्देश मतार्थ कहलाता है। 4. आगमार्थ- परमागम के अविरोध पूर्वक विचारना चाहिए, किन्तु कथन में विवाद नहीं
करना चाहिए। 5. भावार्थ- शुद्ध नय के आश्रित जो जीव का स्वरूप है वह तो उपादेय ग्रहण करने योग्य
है और शेष सब त्याज्य है। इस प्रकार हेय-उपादेय रूप से भावार्थ भी समझना चाहिए।
शास्त्र रक्षा से कुन्दकुन्द शास्त्र की महिमा को प्रदर्शित करने वाला दृष्टान्त है
एक ग्राम में एक ग्वाला एक सेठ जी की गायें चराने जंगल में जाया करता था। एक दिन उस ग्वाले ने देखा कि जंगल में आग लगी हुई है सारे वक्ष ध-ध करके जल रहे थे और बीच में एक वृक्ष बचा हुआ था। उसे उत्सुकता हुई कि यह वृक्ष बच गया है। उसने करीब जाकर देखा कि वृक्ष के कोटर में एक ग्रन्थ रखा है। उसने सोचा की इस ग्रन्थ के कारण ही यह वृक्ष बच गया है वह अवश्य ही यह कोई महत्त्वपूर्ण वस्तु है। उसे वह उठा लाया। एक दिन उस ग्राम में एक मुनिराज आहार चर्या के लिए आए। आहार के बाद उस ग्वाले ने वह ग्रन्थ मुनिराज को भेंट कर दिया। जिससे अर्जित पुण्य के प्रभाव से वह ग्वाला उसी सेठ के घर पुत्र रूप में जन्म लेकर 11 साल की अवस्था में दिगम्बर दीक्षा ग्रहण कर लेता है और 33 साल की अवस्था में आचार्य पद ग्रहण करते हैं। जिनका नाम आचार्य कुन्दकुन्द रखा गया।
गुण श्रेष्ठ या धन एक धनवान घमण्डी सेठ ने अपने दरवाजे पर एक दोहा लिखवा रखा था
गुणवन्तो मत जन्म यो, जन्मयो सदा धनवन्त।
धनवान के द्वार, पडे रहे सदा गुणवन्त॥ अनेक विद्वानों ने कहा, सेठ जी यह श्लोक मिटा दीजिये, विद्वान का पैसे से क्या मेल, जो पैसा ले वह विद्वान नहीं। परन्तु सेठ को पैसे का घमण्ड था। इसलिए वह नहीं माना। सेठ और विद्वान् में विवाद बढ़ गया फैसला राजा के पास गया। राजाने एक पत्र लिखकर फैसले के लिए दूसरे राजा के पास भेज दिया कहा कि अमुक देश के राजा के पास यह पत्र लेकर चले जाओ वह राजा तुम्हारा फैसला करेगा। दोनों ने वह पत्र ले जाकर उस राजा को दे दिया उस पत्र में
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