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________________ कि हमें कैसे भाव करने से कैसा फल मिलेगा। अच्छे भाव करने से अच्छा फल तथा बुरे भाव करने से बुरा फल मिलता है। इस प्रकार का वर्णन गोम्मटसार जीवकाण्ड, कर्मकाण्ड, धवला, जय धवला, महाधवला, तिलोयपण्णति, त्रिलोकसार आदि ग्रन्थों में मिलता है। इनको हमें पढ़ना चाहिए। यदि आपको अपने चित्त में ज्ञान की सुरभि महकाना है तो कर्म सिद्धान्त को अवश्य पढ़ना होगा। चरणानुयोग का लक्षण गृहमेध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षाङ्गम्। चरणानुयोगसमयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति ।। गृह में आसक्त है बुद्धि जिनकी ऐसे गृहस्थ, गृह से विरक्त होकर के त्यागी ऐसे अनगार अर्थात् यति, उनका चारित्र रूप जो सम्यक् आचरण उसकी उत्पति, वृद्धि और रक्षा का अंग अर्थात् कारण ऐसा चरणानुयोग का स्वरूप है। -रत्नकरण्ड. 45 मुनि और गृहस्थ का जो निर्दोष आचरण उसकी उत्पत्ति की वृद्धि का और दिन प्रतिदिन धारण किये आचरण की रक्षा का कारण चरणानुयोग अंग सम्यग्ज्ञान ही है। यह अनुयोग नीति से परिपूर्ण है इसके माध्यम से हमें यह पता चलता है कि मुनिधर्म व श्रावकधर्म क्या है, दोनों की आचार सहिंता क्या है? यदि अपने जीवन को पवित्र बनाना है तो महापुरुषों के आचरण को देखकर, समझकर, अपने जीवन में उतारना होगा, अपनाना होगा। इस प्रकार का वर्णन अष्टपाहुड, भगवती आराधना, मूलाचार प्रदीपिका, अनगारधर्मामृत, संयम प्रकाश पूर्वार्द्ध आदि ग्रंथों में मुनिचर्या का तथा रत्नकरण्ड श्रावकाचार, सागारधर्मामृत, संयम प्रकाश उत्तरार्द्ध आदि अनेक 32 श्रावकाचारों में श्रावक चर्या का वर्णन मिलता है इन ग्रंथों में से जो भी उचित लगे उनका अध्ययन करना चाहिए। द्रव्यानुयोग का लक्षण जीवाजीवसुतत्त्वे पुण्यापुण्ये च बन्धमोक्षौच । द्रव्यानुयो गदीपः श्रुतविद्यालो कमातनुते ।। - रत्नकरण्ड. 45 द्रव्यानुयोग दीपक बाधा रहित जीव- अजीव के स्वरूप को पुण्य-पाप को, कर्मबन्ध के स्वरूप को तथा कर्मों से छूटने रूप मोक्ष के स्वरूप को जिस प्रकार से आत्मा में उद्योत हो जाये उस प्रकार विस्तार से दिखलाता है। 168
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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