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________________ सम्यग्ज्ञान के चार सोपान 1. स्वाध्याय 2. नौ पदार्थों का जानना 3. स्वपर भेद ज्ञान 4. स्वसंवेदन ज्ञान सम्यग्ज्ञान का प्रथम सोपान : स्वाध्याय प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन स्वाध्याय करना चाहिए। स्वाध्याय कौन से शास्त्र का करना चाहिए, आचार्य समंतभद्र कहते हैं: आप्तोपज़मनुल्लङ्घ्य-मदृष्टेष्टविरोधकम्। तत्त्वोपदेशकृत्सार्वं, शास्त्र कापथघट्टनम्॥ -रलक. पा. जो सच्चे देव का कहा हुआ हो, इन्द्रादिक से भी खण्डन रहित हो. प्रत्यक्ष व परोक्ष आदि प्रमाणों से निर्बाध, तत्त्वों का यथार्थ उपदेशक हो, सब का हितकारी और मिथ्यात्व आदि कुमार्ग का नाशक हो, उसे सच्चा शास्त्र कहते हैं। ऐसे शास्त्र चार अनुयोगों में विभाजित किये गए हैं:1. प्रथमानुयोग, 2. करणानुयोग, 3. चरणानुयोग और, 4. द्रव्यानुयोग प्रथमानुयोग का निम्न स्वरूप है । प्रथमानुयोगमाख्यानं, चरितपुराणमपि पुण्यम्। बोधिसमाधिनिधानं, बोधति बोधः समीचीनः॥ -रत्नकरण्ड, 43 प्रथमानुयोग में पुण्य और पापरूप अर्थ का कथन होता है। संसार से छूटने रूप मोक्ष का कथन होता है। उसमें पुण्य पुरुषों का चरित और कथाएं वर्णित की जाती हैं। जो रत्नत्रय एवं समाधि का निदान-कारण है ऐसा सम्यक् बोध प्रथमानुयोग को जानता है - बतलाता है। ___प्रथमानुयोग एक अलंकार है अर्थात् इसमें बहुत आकर्षक रूप में वर्णन किया जाता है। इस अनुयोग के माध्यम से पौराणिक महापुरुषों के समूल जीवन चरित्र का पता लगता है। यदि स्वयं को वीतरागी बनाना है तो उन महापुरुषों को अपने जीवन में आदर्श बनाना होगा, उनकी जीवन चर्या को समझकर अपनाना होगा। महापुरुषों का वर्णन करने वाले महान शास्त्र, महापुराण, 166
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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