SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3. तर्क :- व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं। इसके बिना यह नहीं इसे व्याप्ति कहते है। जिस तरह अग्नि के बिना धुँआ नहीं होता, आत्मा के बिना चेतन नहीं होता। इस व्याप्ति के ज्ञान को ही तर्क कहते हैं । 4. अनुमान:- लक्षण के द्वारा पदार्थ का निश्चय किया जाय, उसे अनुमान कहते है। जैसे किसी पर्वत में धुँआ देखकर निश्चय करना कि यहाँ अग्नि है। 5. आगमः- आप्त के वचन के निमित्त से पदार्थ के जानने को आगम कहते हैं। जैस शास्त्र से लोक का स्वरूप जानना । इस प्रकार परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद जानने चाहिए : नय का स्वरूप और भेद श्रुतज्ञान प्रमाण के अंश को नय कहते हैं। प्रमाण से जो पदार्थ जाना था, उस पदार्था उसके एक धर्म की मुख्यता से जो अनुभव कराये उसे नय कहते हैं। उसके दो भेद हैं द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। जो द्रव्य को मुख्य करके अनुभव कराये वह द्रव्यार्थिक नय है। द्रव्यार्थिक नय के तीन भेद 1. नैगमनयः- संकल्प मात्र से पदार्थ के ग्रहण करने-जानने को नैगमनय कहते हैं जैसे कठौती बनाने के लिए कोई लकड़ी लेने जा रहा था, उससे किसी ने पूछा कि "तुम कहाँ जा रहे हो?" तब उसने उत्तर दिया कि "मैं कठौती लेने जा रहा हूँ। जहाँ वह जा रहा है, वहाँ कठौती तो नहीं मिलेगी; परन्तु उसके विचार में है कि मैं लकड़ी लाकर कठौती बनाऊँगा । 2. संग्रहनयः - सामान्य रूप से पदार्थों के ग्रहण को संग्रह नय कहते है। जैसे छह जाति के समस्त द्रव्य सत्ता लक्षण संयुक्त हैं। इन छह द्रव्यों के समूह को द्रव्य संज्ञा द्वारा अथवा लक्षण द्वारा जानना इस नय का प्रयोजन है। 3. व्यवहारनयः - सामान्य रूप से ( संग्रह - नय से) जाने हुए द्रव्य के विशेष (भेद) करने को व्यवहार नय कहते हैं। जैसे द्रव्य के छः भेद करना इस प्रकार यह तीन भेद द्रव्यार्थिक नय के बताये हैं। पर्यायार्थिक नय के चार भेद 1. ऋजूसूत्रनयः- जो वर्तमान पर्याय मात्र को जानता है उसे ऋजूसूत्रनय कहते हैं । 2. शब्दनयः - व्याकरणादि के अनुसार शब्द की अशुद्धता को दूर करना शब्द नय है। 3. समभिरुढ़नयः- पदार्थ में मुख्यतया एक अर्थ के आरुढ़ करने को समभिरुढ़नय कहते 162
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy