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________________ मोहित हो गया और उसने उससे शादी की माँग की परन्तु इस राजा की उर्मिला नाम की रानी थी। जो जिनधर्म का पालन करती थी। तब मठ के लोगों ने कहा- राजा स्वयं बौद्धधर्म स्वीकार करें और बुद्धदासी को पटरानी बनाये। इस शर्त पर ही हम शादी करने की स्वीकृति देगें" कामान्ध राजा ने बिना सोचे समझे ही यह बात स्वीकार कर ली। अरे धिक्कार हो इन पचेंन्द्रियों के विषयों को। कामान्ध जीव सच्चे धर्म से भी भ्रष्ट हो जाते हैं। एक दिन बुद्धदासी राजा की पटरानी बन गई वह बौद्धधर्म का बहुत प्रचार करने लगी। ___इधर उर्मिला रानी जिनधर्म की परम भक्त थी उसने हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी अष्टाह्निका पर्व में जिनेन्द्र भगवान की विशाल अद्भुत शोभायात्रा निकालने की तैयारी की, परन्तु बुद्धदासी को यह सहन नहीं हुआ। उसने राजा से कहकर रथयात्रा स्थगित करवा दी और बौद्धों की रथयात्रा पहले निकलवाने को कहा। अरे जिनधर्म की परम महिमा की, इसे कैसे खबर हो? जिनेन्द्र भगवान की रथयात्रा में विघ्न होने पर उर्मिला को बहुत दुःख हुआ और रथयात्रा नहीं निकलने से उसने अनशन व्रत धारण करके वन में जाकर सोमदत्त तथा वज्रकुमार मुनियों के सानिध्य में शरण ली। उसने मनिवरों से प्रार्थना की कि वे जिनधर्म पर आये हये इस संकट का निवारण करें। रानी की बात सुनकर वज्रकुमार मुनिराज के अन्तर में धर्मप्रभावना का भाव उल्लसित हुआ। इसी समय विद्याधर राजा दिवाकर अपने विद्याधरों सहित वहाँ मुनियों के दर्शन वन्दन करने आये वज्रकमार मनि ने कहा- राजन! आप जैनधर्म के परम भक्त हैं और धर्म के ऊपर मथुरा नगरी में संकट आया है वह दूर करने में आप समर्थ हैं। धर्मात्माओं को धर्म की प्रभावना का उत्साह होता है। तन से, मन से, धन से, शास्त्र से, ज्ञान से, विद्या से, सर्व प्रकार से वे जिनधर्म की वृद्धि करते हैं और धर्मात्माओं का कष्ट निवारण करते हैं। दिवाकर राजा को धर्म का प्रेम तो था ही मुनिराज के उपदेश से उसे और भी प्रेरणा मिली, मुनिराज को नमस्कार करके तुरन्त ही उर्मिला रानी के साथ सभी विद्याधर मथुरा नगरी आ पहुंचे। उन्होंने जोर शोर से तैयारी के साथ बड़ी धूमधाम से जिनेन्द्र भगवान की शोभायात्रा निकाली। हजारों विद्याधरों के प्रभाव को देखकर राजा और बुद्धदासी भी आश्चर्य चकित हो गये और जिनधर्म से प्रभावित होकर आनन्द पूर्वक उन्होंने जैनधर्म स्वीकार करके अपना कल्याण किया तथा सत्यधर्म की प्रेरणा के लिए उर्मिला रानी का उपकार माना। उर्मिला रानी ने उन्हें जिनधर्म के वीतरागी देव-गुरु के अपार महिमा समझाई। मथुरा नगरी के हजारों जीव भी ऐसी महान् धर्म प्रभावना देखकर आनन्दित हुऐ। और बहुमान पूर्वक जिनधर्म की उपासना करने लगे। इस प्रकार वज्रकुमार मुनि और उर्मिला रानी द्वारा जिनधर्म की महान प्रभावना हुई। 160
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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