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समुचित रीति से अज्ञान रूपी अंधकार के विस्तार को हटा कर जिनधर्म की महिमा फैलाना प्रभावना अंग कहलाता है। आचार्य कार्तिकेय स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहते है।
जो दस-भेयं धम्म भव्य-जणाणं पयासदे विमलं।
अप्पाणं पि पयासदि णाठोण पहावणा तस्स॥४२२॥ जो सम्यग्दृष्टि दस भेद रूप धर्म को भव्यजीवों के निकट अपने ज्ञान से निर्मल प्रगट करे तथा अपनी आत्मा को इस प्रकार के धर्म से प्रकाशित करे उसके प्रभावना गण होता है।
मुनिश्री वज्रकुमार की कहानी जैसे होवे वैसे भाई, दूर हटा जग का अज्ञान। कर प्रकाश कर दे विनाश तम, फैला दे शुचि सच्चा ज्ञान। तन-मन-धन सर्वस्व भले ही, तेरा इसमें लग जावे।
'वज कुमार' मुनीन्द्र सदृश तू, तब "प्रभावना" कर पावे॥ अहिछत्रपुर राज्य में सोमदत्त नामक एक मन्त्री था। उसकी गर्भवती पत्नि को आम खाने की इच्छा हुई। उस समय आम पकने का मौसम नहीं था, फिर भी मन्त्री ने वन में जाकर ढूंढा तो एक पेड़ पर एक सुन्दर आम झूलता हुआ दिखाई दिया उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उस पेड़ के नीचे एक वीतरागी मुनिराज ध्यानस्थ बैठे थे। शायद, उन्हीं के प्रभाव से उस पेड़ पर आम पक गया था। ____ मन्त्री ने भक्तिपूर्वक नमस्कार करके मुनि महाराज के सामने विनय पूर्वक हाथ जोड़कर निवेदन किया। तब मुनिराज ने उस मन्त्री को निकट भव्य जानकर धर्म का स्वरूप समझाया उसी समय अत्यन्त वैराग्य पूर्ण उपदेश सुनकर मन्त्री दीक्षा लेकर मुनि हो गये और वन में जाकर आत्म साधना करने लगे।
उस सोमदत्त मन्त्री की पलि ने यज्ञदत्त नामक पुत्र को जन्म दिया वह पुत्र को लेकर मुनिराज के पास आई। पर संसार से विरक्त मुनि महाराज ने उससे मिलने से इन्कार कर दिया। इससे क्रोधि त होकर वह स्त्री बोली, अगर साधु बना था तो मुझसे शादी क्यों की? मेरा जीवन क्यों बिगाड़ा? अब इस पुत्र का पालन पोषण कौन करेगा? ऐसा कहकर उस बालक को वहीं छोड़कर वह चली गई। इस बालक का नाम वजकुमार था क्योंकि उसके हाथ पर वज्र का चिन्ह था। उसी समय दिवाकर नाम के विद्याधर राजा तीर्थयात्रा करने निकले थे जब मुनि महाराज को वन्दन करके जाने लगे तो उन्होंने गुफा के बाहर ही एक अत्यंत तेजस्वी सुन्दर बालक को पड़ा देखा विद्याध र राजा की रानी ने उस बालक को उठा लिया और उसे अपने साथ ले गये। उस वज्रकुमार
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