________________
उसने चोरों की सभा में घोषणा की-जो कोई उस जिनभक्त सेठ के महल से कीमती रत्न लेकर आयेगा उसे बड़ा इनाम मिलेगा।"
सूर्य नामक एक चोर उसके लिए तैयार हो गया उसने कहा- “अरे, इन्द्र के मुकुट में लगा हुआ रत्न भी में क्षण भर में लाकर दे सकता हूँ तो वह कौनसी बड़ी बात है?
महल से उस रत्न की चोरी करना कोई सरल बात नहीं थी। वह चोर किसी भी तरह से वहाँ पहुँच नहीं सका इसलिए अन्त में एक त्यागी ब्रह्मचारी का कपटी वेश धारण करके वह उस सेठ के यहाँ पहुँचा उस त्यागी बने चोर में वक्तृत्व की अच्छी कला थी, जिस किसी से वह बात करता उसे अपनी तरफ आकर्षित कर लेता, उसी तरह व्रत उपवास इत्यादि को दिखा-दिखाकर लोगों में उसने प्रसिद्धि भी पा ली थी तथा उसे धर्मात्मा समझ कर जिनभक्त सेठ ने स्वयं चैत्यालय की देखरेख का काम उसे सौंप दिया।
सूर्य चोर तो उस नीलम मणि को देखते ही आनन्द विभोर हो गया और विचार करने लगा-"कब मौका मिले और कब इसे लेकर भाँगू? इन्ही दिनों सेठ को बाहर गाँव जाना था। इसलिए उस बनावटी ब्रह्मचारी श्रावक से चैत्यालय संभालने के बारे में कहकर सेठ चले गये जब रात होने लगी तो गाँव से थोड़ी दूर जाकर उन्होंने पड़ाव डाला।
रात हो गई। सूर्य चोर उठा। नीलम मणिरत्न को जेब में रखा और भागने लगा, परन्तु नीलम मणि का प्रकाश छिपा नहीं वह अन्धेरे में भी जगमगाता था। इससे चौकीदारों को शंका हुई और उसे पकड़ने के लिए वे उसके पीछे दौड़ पड़े। "अरे मन्दिर के नीलम मणि की चोरी करके चोर भाग रहा है। पकड़ो-पकड़ो - पकड़ो" चारों ओर सिपाहियों ने हल्ला मचा दिया।
इधर सूर्य चोर को भागने का कोई मार्ग नहीं रहा इसलिए वह तो जहाँ जिनभक्त सेठ का पडाव था, वहीं पर घुस गया चौकीदार चिल्लाते हुए चोर को पकड़ने के लिए पीछे से आये। सेठ सब कुछ समझ गया।
"लेकिन त्यागी के रूप में प्रसिद्ध यह मनुष्य चोर है। ऐसा लोगों में प्रसिद्ध हुआ तो धर्म की बहुत निन्दा होगी" ऐसा विचार कर बुद्धिमान सेठ ने चौकीदारों को रोक कर कहा-"अरे। तुम लोग यह क्या कर रहे हो? यह कोई चोर नहीं है। यह तो धर्मात्मा है। नीलमणि लाने के लिए तो मैंने उसे कहा था, तुम गलती से इसे चोर समझकर तंग कर रहे हो।" सेठ की बात सुनकर लोग चुपचाप वापिस चले गये। इस तरह एक दुष्ट मनुष्य की भूल के कारण होने वाली धर्म की बदनामी बच गयी। इसे ही उपगृहन अंग कहते है।
जिस तरह माता इच्छा करती है कि मेरा पुत्र उत्तम गुणवान हो फिर भी यदि पुत्र में कोई छोटा-बड़ा दोष देखकर वह उसे प्रसिद्ध नहीं करती परन्तु ऐसा उपाय करती है कि उसके गुण
148