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________________ हैं कि नगर की रानी ने गधे का एक बाल तोड़ा है हम भी तोड़ेगे। परिणाम यह निकलता है कि गधा गंजा हो जाता है। किंतु अब भी कुछ लोग ऐसे रह जाते हैं जिन्हें एक भी बाल नहीं मिलता उनको तो गधा करामाती दिख रहा था, इसलिए अब गधे की खाल नोंचने लगते हैं। खाल - नोंचते - नोंचते आखिर क्या होता है कि बेचारे गधे के प्राण निकल जाते हैं। इसी का नाम रूढ़िवाद है, इसी का नाम कुदेव सेवन है और इसी का नाम भेड़िया चाल है। इन सभी को सम्मिलित रूप से मिथ्यात्व कहा गया है, जिसका फल अनन्त संसार रूप दुःख ही है। सम्यक्त्व का पहला अंग [ निःशंक ] जो चत्तारि वि पाए छिंददि ते कम्म बन्ध मोह करे। सो णिस्सको चेदा सम्मादिट्ठी मुणेदव्वों ॥ जो चेतयिता कर्म बन्ध सम्बन्धी मोह करने वाले [ अतः जीव निश्चयतः कर्मो के द्वारा बंधा हुआ है ऐसा भ्रम करने वाले] मिथ्यात्वादि भाव रूप चारों पादों [स्वामित्व, कृतत्व, भोक्तृत्व, ममत्व] को छेदता है। उसको निःशंक सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए। आचार्य समन्तभद्र कहते है : इदमेवे दृशमेव तत्त्वं नान्यन्न चान्यथा । इत्यकम्पायसाम्भोवत्, सन्मार्गे ऽसंशयारूचि ।। - - Tricho, 11 परमार्थ स्वरूप, [निश्चय से] देव, शास्त्र, गुरु का लक्षण इसी प्रकार है और किसी प्रकार नहीं, देव, शास्त्र, गुरू के प्रवाह में तलवार की धार पर रखे हुए पानी के समान अटल श्रद्धान निःशंकित अंग है। अंजन चोर का दृष्टान्त इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कशमीर नाम का एक देश है। इसमें तालाब और कमलों से सुशोभित जिन मन्दिरों से युक्त विजयपुर नाम का सुन्दर नगर है । इस नगर में, इन्द्र के समान वैभव धारी, कामदेव के समान सुन्दर, पराक्रमी, जिनेन्द्र भगवान का भक्त, परोपकारी प्रजा वात्सल्य, अरिमित नाम का राजा राज्य करता था। इस राजा की भगवान जिनेन्द्र के चरणाविन्दों में भ्रमर की तरह घूमने वाली कमलनयनी, गजगामिनी, सुन्दरी नाम की पटरानी थी, इन दोनों को सुखपूर्वक समय बिताते हुए, नयनों को 127
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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