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स्वयं साथ हो लिया वह क्या मुनि दीक्षा लेगा बज्रबाहु उदय सुन्दर का उत्तर सुन अपने रथ से उतरते हैं और महाराज के पास जाकर मुनिदीक्षा लेने का दृढ़ निश्चय कर लेते हैं। अब उदय सुन्दर जीजा जी को बहुत समझाते हैं, माफी मांगते है कि मैंने तो मजाक किया था, आप तो सच में ही समझ गये। मनोदया भी बहुत समझाती है, किन्तु सब व्यर्थ हो जाता है। अब बज्रबाहु मुनिराज के पास जा अपने सब वस्त्र, आभूषण उतार मुनि दीक्षा ले लेते है। अपने केशों को अपने हाथों से घास के सदृश उखाड़ देते हैं, और वहीं पद्मासन में बैठ आत्मध्यान में लीन हो जाते हैं। यह देख उदयसुन्दर और मनोदया भी मुनिदीक्षा एवं आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। ये सब संसारी जीव संसार को क्षणभंगुर समझ कर जीर्ण तण के समान संसार के वैभव का त्याग कर देते हैं। बज्रबाहु विचारने लगते हैं कि आज में इस भयंकर संसार रूपी कारागृह से निकल गया हूँ।
जिस प्रकार उलझा हुआ ऊनी सत एक मिनट में सुलझ जाता है, उसी प्रकार जिनके संस्कार उत्तम होते हैं, वे जीव भी शीघ्र निमित्त पाकर सुलझ जाते हैं, मुक्त हो जाते हैं। यह कर्मों से मुक्त होना ही मोक्षतत्व है।
विशेष:-संसार में दो प्रकार के प्राणी पाये जाते हैं- भव्य प्राणी और अभव्य प्राणी। 1. भव्य प्राणी :- जो जीव संसार से आज नहीं तो कल अवश्य मुक्ति को प्राप्त होने वाले
हैं वे जीव भव्य कहलाते हैं। ये काल की अपेक्षा तीन प्रकार के होते हैं - अ. निकट भव्य :- जो इसी भव से या दो-तीन भव में मोक्ष चले जाने वाले हैं, उसे
निकट भव्य कहते हैं। दूसरे शब्दों में जो थोड़े काल में मुक्त हों वे निकट भव्य जीव
कहलाते हैं। क. दूर भव्य :- जो आगे जाकर मोक्ष प्राप्त करेंगे, उन्हें दूर भव्य कहते हैं। दूसरे शब्दों
में जो बहुत काल में मोक्ष प्राप्त करेंगे उसे दूर भव्य जीव कहते है। स. दूरान्दूर भव्य या अभव्यसम भव्य :- जो तीन काल में भी मुक्त नहीं होंगे अर्थात्
जो जीव कभी भी मुक्त नहीं होंगे, किन्तु उन जीवों में मुक्त होने की पूर्ण योग्यता होती
है। ये दूरान्दूर भव्य या अभव्यसम भव्य कहलाते हैं। अभव्य प्राणी :- जिन जीवों के सम्यग्दर्शन आदि प्रकट होने की योग्यता ही नहीं हैं उन्हें अभव्य प्राणी कहते हैं। ये जीव कभी भी मुक्त नहीं हो सकते हैं। जैसे टर्रा मूंग को कितना | भी पकाना चाहो, सिझाना चाहो, भले ही एक टन ईंधन कोयला उसे पकाने में लग जाये, वह टर्रा मूंग वैसा का वैसा ही रहता है, पकता-गलता नहीं। पत्थर सीझ सकता है किन्तु वह टर्रा मूंग नहीं सीझेगा। जिस जीव का ऐसा विचित्र स्वभाव होता है उसे अभव्य प्राणी कहते हैं।
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