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________________ - जिनकी बुद्धि गुण चुनने के लिए चिमटी के समान हैं, विकथा सुनने के लिए जिनके कान मढ़े हुए अर्थात् बहरे हैं, जिनका चित्त निष्कपट है, जो मृदु भाषण करते हैं, जिनकी क्रोधादि रहित सोमदृष्टि है, जो ऐसे कोमल स्वभावी हैं कि मानों मोम के ही बने हों जिन्हें आत्मध्यान की शक्ति प्रगट हुई है, परम समाधि साधने के लिए जिनका चित्त उत्साहित रहता है, वे ही मोक्ष मार्गी हैं, वे ही पवित्र हैं, सदा आत्मानुभव का रस दृढ़ करते हैं और आत्मानुभव का ही पाठ पढ़ते हैं अर्थात् उनको आत्मा की ही रटन लगी रहती है। मोक्षतत्व को निम्न दृष्टान्तों द्वारा भी समझा जा सकता है - दृढ़ निश्चय अयोध्या नगरी में सुरेन्द्र मन्यु नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम रानी कीर्ति समा था। इनके बज्रबाहु नाम का एक बहुत ही सुन्दर रूपवान एवं गुणवान पुत्र था। वह अपने माता-पिता को बहुत ही प्यारा था। माता उसे बाल्यपन से ही मनिराजों के समीप ले जाती थी। इस बालक के हृदय में मुनिराज की छवि व वचन अंकित हो गये थे। जब यह बालक युवा हो गया तब इसका विवाह हस्तिनापुर के राजा इमवाहन व रानी चूडामणि की पुत्री मनोदया से हो जाता है। मनोदया भी इतनी रूपवान व गुणवान थी कि उसकी उपमा चाँद से बढ़कर दी जाती थी। बज्रबाहु अपनी पत्नी मनोदया को एक क्षण भी नहीं छोड़ता था। एक दिन मनोरमा का भाई विवाह के दो दिन बाद ही बहन को लेने आ जाता है। जब मनोदया अपने घर (माँ के घर) अपने भाई उदयसुन्दर के साथ जाने लगी तब वह भी इनके साथ अपनी ससुराल चल देता है। रास्ते में चलते-चलते बज्रबाहु की दृष्टि एक पर्वत पर बैठे हुये ध्यान में लीन मुनिराज पर पड़ती है। यह देख कर बज्रबाहु के मन में अनेक विचार उत्पन्न होने लगते हैं। क्या यह पर्वत का अंग है? या यह कोई ठंठ पड़ा है, अथवा कोई साधु है। जब यह निश्चय हो जाता है कि ये दिगम्ब साधु हैं, और अत्यन्त शान्त मुद्रा को धारण करने वाले हैं। तब वे उसे निहारते ही रहे। उनके लिए शत्रु-मित्र, महल-मसान, सोना-चाँदी सब एकसमान थे। घोर तपश्चरण करते, बाईस परीषह को धारण करने वाले वे महामुनिराज, बिल्कुल निस्पृही थे। इस प्रकार मुनिराज को देखकर बज्रबाहु की दृष्टि मुनिराज के ऊपर खम्भे में उत्कीर्ण के समान निश्चल हो जाती है। ऐसी चेष्टा देखकर उदय सुन्दर उपहास करता हुआ, हँसी करते हुए अपने जीजा जी से कहता है कि - जीजा जी आप मुनिराज को बहुत देर से देख रहे हैं। क्या आपका विचार मुनिराज बनने का है? बज्रबाहु कहते हैं उदय सुन्दर तेरा क्या विचार है? उदय सुन्दर हँस कर बोलते हैं कि- मेरा क्या विचार, जो जीजा जी का विचार है सो मेरा विचार है? उदय सुन्दर जानता था कि जो अपनी पत्नी में इतना आसक्त हो कि दो दिन भी अपनी पत्नी को माँ के यहाँ अकेला नहीं भेज सका. - 118
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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