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जिन्हकी धरम ध्यान पावक प्रगट भयौ, संसै मोह विभ्रम बिरख तीनौं डढ़े हैं। जिन्ह की चितोनि आगै उदै स्वान भूसि भागै, लागै न करम रज ग्यान गज चढ़े हैं। जिन्हकी समुझिकी तरंग अंग आगम मैं, आगम मैं निपुन अध्यातममैं कढ़े है। तेई परमारथी पुनीत नर आठो जाम, राम रस गाढ़ करें यहै पाठ पढ़े हैं।
(नाटक समयसार) जिनकी धर्मध्यान रूप अग्नि में संशय-विमोह-विभ्रम ये तीनों वृक्ष जल गये हैं, जिनकी सुदृष्टि के आगे उदय रूपी कुत्ते भौंकते-2 भाग जाते हैं, वे ज्ञान रूपी हाथी पर सवार हैं इससे कर्म रूपी धूल उन तक नहीं पहुँचती। जिनके विचार में शास्त्रज्ञान की तरंगें उठती हैं, जो सिद्धान्त में प्रवीण हैं, जो अध्यात्मिक विद्या के पारगामी हैं, वे ही मोक्ष मार्गी हैं- वे ही पवित्र हैं, सदा आत्मानुभाव का रस दृढ़ करते हैं और आत्मानुभव का ही पाठ पढ़ते हैं।
छह द्रव्यों का समूह ही संसार है एई छहौं दर्व इन्हीं की है जगत जाल, तामैं पाँच जड़ एक चेतन सुजान है। काहूकी अनन्त सत्ता काहूसौं न मिलै कोई।, एक एक सत्ता मैं अनन्त गुण गान हैं।। एक एक सत्ता मैं अनन्त परजाइ फिरै, एक मैं अनेक इहि भांति परवान हैं। यहै स्याद्वाद यहै संतनि की मरजाद, यहै सुख पोख यहै मोख को निदान है।
नाटक समयसार जो छह द्रव्य हैं, इन्हीं का समूह ही संसार है। इन छह द्रव्यों में पाँच अचेतन हैं, एक चेतन द्रव्य ज्ञानमय है। किसी की अनन्त सत्ता किसी से कभी नहीं मिलती। प्रत्येक सत्ता में अनन्तगुण समूह हैं, और अनन्त पर्यायें हैं, एक प्रकार एक में अनेक जानना। यही स्याद्वाद है,यही सत्पुरुषों का अखंडित कथन है यही आनन्द वर्धक है और यही ज्ञान मोक्ष का कारण है।
जिन्हकी चिहुँटि चिमटासी गुन चुनिबेकौं, कुकथा के सुनिबेकौं दोऊ कान मढ़े हैं। जिन्हको सरल चित्त कोमल बचन बोलैं, सोमदृष्टि लियें डालैं मोम कैसे गढ़े हैं। जिन्हकी सकति जागी अलख अराधिबे कौं, परम समाधि साधिबेकौं मन बढे हैं। तेई परमारथी पुनीत नर आठौं जाम, रामरसगाढ़ करें यह पाठ पढे हैं।
नाटक समयसार
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