SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बन्ध तत्त्व को समझने के लिए निम्न दृष्टान्त को समझना होगा। पराधीनता में सुख नहीं किसी समय एक राजा ने एक तोता पाल रखा था। वह उस तोते को अत्यधिक प्रेम करता था। उसके लिए राजा ने सुन्दर सोने का पिंजरा तथा हीरे-मोतियों से जड़ित कपड़े का कवर बनवा रखा था। वह कवर को उस पिंजरे के ऊपर डाल दिया करता था। राजा ने तोते की देखरेख के लिए एक नौकर भी नियुक्त किया हुआ था। एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए जंगल को जाता है। वह अपने पालतू तोते से पूछता है कि मैं जंगल जा रहा हूँ, तुम्हें अपने साथियों को कोई सूचना देनी हो तो मुझे बता दो, मैं वहाँ कह दूँगा । तोता कहता है कि मेरे साथियों से कह देना कि मैं बहुत आनन्द से हूँ, मेरी पूर्ण सुरक्षा है। देख-रेख के लिए नौकर नियुक्त कर रखे हैं। रानी और राजा की मुझ पर बहुत कृपा है। किन्तु स्वतंत्रता सुख के हाथों कभी बेची जा सकती है क्या? बन्धनों की कितनी भी पूर्ण सुरक्षा हो किन्तु वे कभी भी चाहे नहीं जा सकते, अत: तुम सब लोग सचेत रहना । राजा यह सुन विचारता है कि समाचार तो बहुत खराब है, किन्तु मैंने तो कहने का वायदा किया है। इसलिए कहूँगा अवश्य । राजा ने पेड़ के नीचे खड़े होकर तोतों को अपने पालतृ. तोते का सन्देश सुना डाला। समाचार सुनते ही एक तोता पेड़ से नीचे गिर पड़ता है। इसे देख अन्य सारे तोते भी एक-एक करके पेड़ से नीचे गिरने लगते हैं और मरे हुओं के समान निश्चल हो जाते हैं। यह देख राजा को बहुत पश्चाताप होता है कि मैंने कैसा अशुभ समाचार इन तोतों को सुना डाला। ये समाचार सुनते ही सारे के सारे मर गये। अब यह बात अपने पालतू तोते से अवश्य कहूँगा तोता भी समाचार सुनकर पँख फड़फड़ाकर मरे हुये के समान हो जाता है। यह देख राजा विचारने लगता है कि यह मेरा पालतू तोता भी उनका समाचार सुनकर मर गया। मैं भी कैसा पागल हूँ कि मैंने अपने इस तोते को उनका समाचार ही क्यों सुनाया, उन्होंने मुझ से कुछ नहीं कहा था? तोता राजा को बहुत प्यारा था। अतः राजा ने शाही सम्मान के साथ तोते की अर्थी तैयार करा ली। अब तोते ने जैसे ही यह देखा कि मैं खुले आकाश के नीचे अर्थी पर पड़ा हूँ, वह तुरन्त अवसर का लाभ उठा लेता है। वह अपने पंख फड़फड़ाता हुआ आकाश में उड़ जाता है और एक ऊँचे शिखर पर जाकर बैठ जाता है। राजा कहता है कि यह कैसा धोखा है? क्या मामला है? वह जहाँ तोता बैठा था उस शिखर के नीचे जाता है और कहने लगता है कि 'नीचे आओ-नीचे आओ, मेरे प्यारे तोते।" अब तोता कहता है कि मुझे मेरे मित्रों ने मुक्त होने का सन्देश दे दिया था। उसी का उत्तर मैंने तुम्हें दिया है। 100
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy