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समस्त देव कुदेवों की, गुरु कुगुरू की समान भक्ति करना और समस्त प्रकार के मत-मतान्तरों को बिना विवेक के एक समान ही मानना और उनका आदर करना विनय मित्व है।
स. विपरीत मिथ्यात्व - उल्टी बात मानने को विपरीत मिथ्यात्व कहते हैं। जैसे-हिंसा में धर्म मानना, शरीर को ही आत्मा समझना आदि ।
द. संशय मिध्यात्व - किसी वस्तु को संशय रूप मानना संशय मिध्यात्व है, यथार्थ श्रद्धान न होकर भ्रम में पड़े रहना संशय मिथ्यात्वी, जैसे - सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र इन तीनों की एकता मोक्षमार्ग है या नहीं, यह संशय मिथ्यात्व है।
इ. अज्ञान मिथ्यात्व-तत्त्वों को जानने की चेष्टा न करके अन्धाधुन्ध देखा देखी किसी भी तत्त्व को मान लेना अज्ञान मिथ्यात्व है। पशु बलि को या अन्य पाप क्रिया को दूसरों की देखादेखी करके धर्म मान लेना अज्ञान मिथ्यात्व है।
2. अविरति अपने ही शुद्ध आत्मिक स्वभाव आनंदित रहना आत्मा का निज स्वभाव है, उस परम आनंद से विमुख होकर जब जीव बाह्य विषयों में लिप्त होता है तब उसको अविरति कहते हैं, यह पांच प्रकार की भी है और बारह प्रकार की भी। हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पांच पाप अविरति भाव हैं, इन्हीं के त्याग को व्रत कहते हैं; अथवा ये ही अविरति पांचों इन्द्रिय और छठे मन को वश में न रखकर उनका दास होने रूप प्रवृत्ति करना तथा पृथ्वी आदि छह काय के प्राणियों की विराधना रूपभाव रखना ऐसे छह इन्द्रिय असंयम और छह प्रकार प्राणी असंयम दोनों को मिलाकर बारह प्रकार अविरति भाव है।
3.
प्रमाद - प्रमाद का अर्थ है असावधानी । कुशल कार्यों में अनादर या अनुत्साह को प्रमाद कहते हैं। चार विकथा, चार कषाय, पांच इन्द्रिय, निद्रा और राग (स्नेह) ऐसे पन्द्रह प्रमाद होते हैं। हिंसा का प्रमुख कारण प्रमाद है।
विकथा - भोजन कथा, चोर कथा, स्त्री कथा, और राज कथा ।
क. भोजन कथा - सबेरे से शाम तक भोजन की (खाने-पीने की) हर समय चर्चा करना । ख. चोर कथा-चोरों की कथा करते रहना कि अमुक व्यक्ति बड़ा निर्भय है वह चाहे जिसको मार डाले, चाहे जिसको लूट लेवे, चाहे किसी का धन, धान्य चुरा लेवे, चाहे जिसके मकान, जायदाद पर अधिकार कर लेवे, उसकी प्रशंसा करना उस जैसा होने की इच्छा करना।
ग. स्त्री कथा - स्त्रियों के रूप रंग का वर्णन करते रहना कि उसकी स्त्री अच्छी हैआदि अनेक प्रकार से रंग रूप की प्रशंसा करना ।
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