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________________ पिशाचनी ने कितनों को ही इस संसार में अपना ग्रास बनाया है। मोही जीव इस प्रकार इस ममत्व में मोहित होकर अपने अनन्तानंत भव व्यतीत कर चुके हैं। अतः 'पर' को 'पर' जानकर उससे अपना मोह नष्ट करना चाहिए। अज्ञान में पड़ा चेतन स्वयं को पुद्गल मान रहा है जिससे उसको पर्याय पुद्गल ही मिलती है । जिस जाति का शरीर मिलता है, बस उसी को अपना मानता है, जानता है। जैसे कोई कुत्ते की पर्याय में पहुँचता है तो उसी पर्याय को अपना मानता है, जानता है। देव हो जाये तो समझता मैं देव ही हूँ, नरक में पहुँच जाये तो मैं नारकी हूँ, ऐसा विचार करता है। यह विचार नहीं करता कि ये सब तो अजीव तत्त्व है, मैं तो चेतन हूँ और कल भी रहूँगा। हे चेतन्, जिसे तू अपना मान रहा है वह तो अजीव तत्त्व की पर्याय है। | महान् शक्तिरूप महान् आत्मा है। इसी प्रकार किसी पुण्य के उदय कुछ लौकिक सुख मिल जाये तो मैं सुखी हूँ और किसी पाप के उदय से कोई दुःख आ जाये तो मैं दुःखी हूँ। इससे यह बात निकलती है कि क्या आत्मा का रूप परिवर्तनशील है? नहीं आत्मा का स्वरूप तो एक ही है किन्तु पर्याय परिवर्तशील है, अजीव तत्त्व की ही सारी पर्याय दृष्टिगोचर है। इस बात को समझने के लिये निम्न दृष्टान्त दृष्टव्य है विस्मृत शक्ति की पहचान किसी जंगल में बहुत सारे जीव-जन्तु रहते थे। जब सावन का महीना आया तो आकाश में घनघोर घटा छा जाती है। वन के अन्दर अँधेरा छा जाता है। शेर कहता कि मैं गुफा के अन्दर जाकर छिप जाऊँगा, जब बादल छँट जायेंगे तब बाहर निकलूंगा। सब पशु अपने-अपने स्थान पर जाकर छिप जाते हैं। उसी समय एक कुम्हार बहुत से गधे लेकर वहाँ आता है। इन गधों पर सामान लदा था, किन्तु उनमें से एक चंचल सा गधा समान फेंक कर चला जाता है। कुम्हार उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे-पीछे भागता है। वह दौड़ता हुआ वहाँ तक पहुँच जाता है जहाँ शेर अपनी गुफा में छिप गया था। इतनी देर में शेर अपनी गुफा से बाहर आ जाता है। जैसे ही शेर बाहर आता है कुम्हार सोचता है यही मेरा गधा है और उसे दो डण्डे लगा कर कहता है कि चल मेरे आगे-आगे, तेरी आगे चलकर खबर लूँगा । बेचारा शेर काँप जाता है कि पहले तो घटा छा गयी थी, अब अँधियारी आ गयी, अब मुझ पर मार पड़ेगी। इसलिए वह शेर गधों में जाकर मिल जाता है और बोझा लादकर चलने लगता है। वह अपनी दहाड़ शक्ति सब भूल जाता है। अब गधों के संग जाते हुए उसे पहाड़ी पर बैठा एक शेर देख लेता है। सोचता है यह शेर गधों के बीच सामान लादकर काँपता हुआ कहाँ जा रहा है? वह पहाड़ी से कूदता है और दहाड़ने लगता है। उसे देखकर गधों में मिला शेर भी एकदम दहाड़ने लगता है। 87
SR No.010095
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain, Nilam Jain
PublisherDigambar Jain Mandir Samiti
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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