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है- "बाबूजी कृपया कर आप इस पलंग पर लेट जाइये। आपको अपना 'मैं' मिल जायेगा।" यह सुनते ही बाबू जी को तुरन्त ज्ञान हो जाता है। ____ इस प्रकार आप लोग अपने स्वयं के जीव तत्त्व को भूलकर संगीत में लिप्त हो स्वयं को भूल रहे हो, पर को अपना समझ उसी में आचरण कर रहे हैं।
अजीव तत्त्व जिसमें चेतना शक्ति का अभाव हो उसे अजीव कहते हैं। अजीव के पाँच भेद हैं- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, और काला आचार्यों ने ऐसा निरूपण करने के बाद उनकी पहचान करने के लिए उनका विशेष लक्षण तथा क्षेत्र बताया है। ऐसा मानना कि ईश्वर जगत का कर्ता है, यह भ्रम पूर्ण है। जगत् के सभी द्रव्य स्व की अपेक्षा सत् हैं, उन्हें किसी ने नहीं बनाया है। धर्म के नाम पर संसार में जैन के अतिरिक्त दूसरी भी अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं, किन्तु उनमें वस्तु का यथार्थ कथन नहीं मिलता। वे अजीव आदि तत्त्व का स्वरूप अन्य प्रकार से कहते हैं। आकाश
और काल का स्वरूप जैसा वे कहते हैं, वह स्थूल और अन्यथा है। धर्मास्तिकाय और अध मास्तिकाय के स्वरूप से, वे बिल्कुल ही अनभिज्ञ हैं। इस प्रकार ज्ञान-दर्शन से रहित स्वभाव वाले द्रव्य संसार में पाँच ही तत्त्व हैं। इसमें भी केवल पुद्गल सक्रिय है और चार निष्क्रिय हैं। ___ आचार्य नेमिचन्द्र द्रव्यसंग्रह में लिखते हैं
अज्जीवो पुण णेओ, पुग्गल धम्मो अधम्म आयास।
कालो पुग्गल मुत्तो, रूबदिगुणोअमुत्तिसेसा हु॥१५॥ पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, और काल इनको अजीव द्रव्य जानना चाहिए, उनमें रूप, रस, गंध, स्पर्श वाला पुद्गल द्रव्य मूर्तिक है और शेष चार द्रव्य अमूर्तिक जानना चाहिए।।151
(1) पुद्गल द्रव्य अणुस्कंधविभेदेन भिन्नाः स्युः पुद्गला द्विधा।
मूर्ता वर्णरसस्पर्शगुणोपेताश्च रूपिणः॥२९॥ अणु स्कंध भेद से यह पुद्गल दो प्रकार का है और वर्ण, रस, स्पर्श गुण सहित होने से रूपी (मूर्त) है।
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