________________
शिला की कीमत
किसी नगर में एक मनुष्य रहता था। वह हीरों की खान में काम करता था। पूर्व में वह लखपति था, किन्तु वर्तमान स्थिति उसकी खराब हो गयी थी, वह गरीबी में दिन व्यतीत कर रहा था। एक दिन खान में काम करते-करते उसे वहाँ से एक छोटी-सी शिला मिल जाती है। वह उसे लेकर घर आ जाता है। घर पर उसकी स्त्री इस शिला पर मसाला नमक आदि पीसने में इसे प्रयोग करने लगी। कुछ दिनों बाद एक जौहरी इस मनुष्य के घर आता है। उसकी दृष्टि इस शिला पर पड़ती है। जौहरी इस शिला रूपी पत्थर की कीमत जान जाता है। वह इसे सौ रुपये में खरीदने के लिए इस मनुष्य से कहता है। यह मनुष्य अपनी स्त्री से पूछता है कि क्या इसे सौ रुपये में बेच दूँ। स्त्री कहती है कि इसको बेचकर बाजार से एक हजार रुपये ले आओ। यह सुन जौहरी कहता है तुम इसके दो हजार रुपये ले लो, तीन हजार रुपये ले लो किन्तु मुझे ही इस शिला को बेचो | यह मनुष्य समझ जाता है कि यह कोई विशेष पत्थर है अतः वह उसे जौहरी को नहीं बेचता है। वह मनुष्य शिलावर को बुलाकर इसके दो टुकड़े करवा देता है। जैसे ही शिला के दो टुकड़े होते हैं उसमें से कई हीरे बाहर निकल पड़ते हैं। अब यह मनुष्य मालामाल हो जाता है।
इसी प्रकार आत्मा भी कर्मों के आवरण से ढका है। वह आत्मा भी हीरे की ज्योति के समान है। जब कर्मों का आवरण छंटता है तो स्व-आत्मा का पूर्ण प्रकाश विकीर्ण होने लगता
सूर्य की ज्योति भी इस आत्मतत्त्व के आगे कुछ नहीं। यही जीव तत्त्व कहलाता है। इस प्रकार जीव तत्त्व को समझकर उसी में लीन हो जाना चाहिए। जीव तत्त्व को निम्न दृष्टान्त द्वारा और स्पष्ट समझा जा सकता है
स्व की विस्मृति
एक बाबू जी अपने कमरे को सजा रहे थे। जो चीज जहाँ रखी थी वह उसे लिखकर कॉपी में नोट करते जाते थे। जिस पलंग पर वे स्वयं लेटे उसे भी कॉपी में नोट कर लिया। रात्रि को थक कर सो जाते हैं। प्रातः उठते हैं, यथास्थान सभी वस्तुएं अपने स्थान पर रखी मिलती हैं, फिर भी बारी-बारी से वे उन सभी वस्तुओं की गिनती करते हैं। तब पाते हैं कि जिस पलंग पर 'मैं' लेटा हुआ था वह नहीं है। कहाँ गया, कौन ले गया ? सोचते-सोचते ढूँढ़ते-ढूँढ़ते दोपहर हो जाती है। खाना खाना भी भूल जाते हैं। अब इनका नौकर आता है, परेशान होकर पूछता है - " बाबूजी क्या बात है? आज आप खाना खाने भी नहीं आये।" बाबू जी कहते हैं- ""मैं" खो गया है। मिल नहीं रहा है।" तब नौकर कहता है- "बाबू जी आपने 'मैं' कहाँ रखा था?" तब बाबू जी बताते हैं-" यहीं इस पलंग पर 'मैं' था अब नहीं है।" अब नौकर सम्बोधन करता
80