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________________ प्राक्कथन यह पुस्तक मद्रास विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र के उच्च अध्ययन केन्द्र में मेरे द्वारा 1969 ई० से प्रस्तुत किये गये पाठ्यक्रम पर आधारित है। मद्रास विश्वविद्यालय की भारतीय दर्शन की स्नातकोत्तर उपाधि के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप का है । अतः इसके लिए केवल जैन धर्म से सम्बन्धित तथ्यों का प्रस्तुतीकरण ही पर्याप्त नहीं था, बल्कि अधिक गहराई में उतरकर इसे भारतीय परम्परा के एक अभिन्न अंग के रूप में भी प्रस्तुत करना आवश्यक था। अपने पाठ्यक्रम के दौरान मैंने यही दिखाने का प्रयास किया है कि समग्र भारतीय परम्परा के प्रकाश में ही जैन दर्शन को भली भांति समझा जा सकता है, और भारतीय संस्कृति की समृद्धता का बेहतर आकलन जैन दर्शन के विविध अंगों की गहराई में उतरने के बाद ही संभव है । इसके लिए मुझे प्रथमत: जैन परम्परा का 'विच्छेदन करना पड़ा और इसके विविध अंगों का सूक्ष्म विश्लेषण करना पड़ा। साथ ही, जैन धर्म की उत्पत्ति तथा अन्य धर्मों के साथ इसके सम्बन्ध को लेकर जो गलतफहमियां हैं उन्हें भी दूर करना जरूरी था। अपने विद्यार्थियों के आग्रह पर मैंने अपने संपूर्ण विश्लेषण को कागज पर उतारा, और उचित समझा कि सामान्य पाठकों भारतीय और विदेशी दोनों ही - की दृष्टि से और जैन चितन के गंभीर अध्येताओं की दृष्टि से भी सम्पूर्ण परम्परा का एक सर्वांगीण सर्वेक्षण प्रस्तुत करने के साथ-साथ विषय की प्रमुख बातों के विवेचन में संक्षेप का ध्यान रखा जाय । इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर जैन धर्म का सामान्य परिचय (भूमिका), ज्ञानमीमांसा, मनोविज्ञान, तस्वमीमांसा तथा नीतिशास्त्र के भागों की रचना हुई है। लेखक इस बात को महसूस करता है कि जैन दार्शनिकों की वैशिष्ट्यपूर्ण संर्वांगीण दृष्टि को और सूक्ष्म विवेचन को करीब पौने दो सौ पृष्ठों में प्रस्तुत करना समीचीन नहीं है, परन्तु आशा है कि इस परम्परा के प्रमुख अंगों का विवेचन (चाहे कितना भी संक्षिप्त क्यों न हो) करके ऐसे सारतत्त्व को व्यक्त किया ही जा सकता है जिसमें न केवल विषय का व्याख्यान हो, बल्कि सम्पूर्ण परम्परा का समुचित निरूपण भी हो। प्रस्तुत कृति में निरूपण को विशिष्ट महत्व दिया गया है, यह दावा में नहीं
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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