________________
52
जैन दर्शन
कि इन दोनों का उदभव एक साथ नहीं हो सकता। इसके लिए कारण यह बताया गया है कि मानव मस्तिष्क में यह दो चैतसिक क्रियाएं एक साथ नहीं हो सकती। दर्शन तथा ज्ञान के एक साथ प्रकट होने का यह सारा वाद-विवाद केवल-शानी पुरुषके संदर्भ में ही है । जो पुरुष केवल-शानी नहीं है, उसको लेकर कोई वादविवाद नहीं है।
ये तीन मान्य विचार हैं : (1) दर्शन तथा ज्ञान का उद्भव एक साथ होता है, (2) एक के बाद दूसरे का उद्भव होता है, और (3) दोनों पूर्णतः
(1) पहला विचार धर्मग्रन्थों का है, और इसके लिए उनका मुख्य तर्क यह है कि केवल-ज्ञानी पुरुष में दर्शनावरण-कर्म तथा ज्ञानावरण-कर्म दोनों का ही विनाश हो जाता है, इसलिए बाधाएं पूर्ण रूप से दूर हो जाती हैं और दर्शन तथा शान का एकसाथ उद्भव होता है। इसके अलावा, यदि दर्शन तथा ज्ञान को एकसाथ उद्भूत मानते हैं, तो सर्वज्ञता प्रतिबद्ध होगी और अप्रतिबद्ध नहीं होगी, और यह स्थिति केवल-ज्ञान की जैन धारणा की भावना के प्रतिकूल है।
(2) दूसरे मत में पहले मत के विरुद्ध तार्किक युक्ति पेश की गयी है। यदि पूर्ण दर्शन तथा पूर्ण ज्ञान का उद्भव एक साथ होता है, तो फिर कर्म के दो आवरणों-दर्शनावरण तथा ज्ञानावरण-को मानने की क्या आवश्यकता है? यह मत इस बात की ओर भी निर्देश करता है कि दोनों वस्तुओं का एक साथ बोध होना मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी असंभव है। अतः इन सब बाधाओं को यह मानकर दूर किया गया है कि दर्णन तथा ज्ञान का उद्भव एक-एक करके होता है। यह मतः सामान्यतः विकास का द्योतक है-फिर वह विकास चाहे ज्ञान में हो या नैतिक जीवन में प्रथम स्तर का बाद के स्तर में निश्चय ही विस्तार होता है । ज्ञानमीमांसा की दृष्टि से, ज्ञान के विकसित स्तर का अर्थ यह है कि प्राथ. मिक स्तर पूर्ण हो गया है। नीतिशास्त्र के अनुसार, और विशेषतः कर्मावरण की दृष्टि से, विकास का अर्थ यह है कि सभी आवरण एक-एक करके दूर हो गये हैं और अन्त में केवल-ज्ञान प्राप्त हो गया है।
(3) तीसरे मत के अनुसार, केवल-मानी पुरुष के लिए इन्द्रियों तथा मन की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती। इसका अर्थ यह हुआ कि दर्शन के ग्रहण की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि हम एक केबलज्ञानी पुरुष के संदर्भ में दर्शन तथा ज्ञान के बारे में सोचते हैं, तो तब इन दोनों को एकरूप ही सोचना होगा । अतः हम देखते हैं यह मत दर्शन तथा ज्ञान के भेद को केवल मन पर्याय ज्ञान के स्तर तक ही स्वीकार करता है, केवल-ज्ञान के स्तर पर नहीं।
इन सब विकल्पों की समीक्षा करने से स्पष्ट होता है कि (1) और (3) में