________________
क्या जैन धर्म नास्तिक है ?
किया जाय।"
याकोबी ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार जैनों के निरीश्वरवाद को समझा जा सकता है। वह लिखते हैं: "जैन यद्यपि निरीश्वरवादी हैं, फिर भी संभवतः उन्हें अपने को निरीश्वरवादी कहलाना पसंद न होगा । यद्यपि वे यह मानते हैं कि इस जगत का न कोई आरंभ है और न कोई अन्त होगा और इसलिए किसी ईश्वर द्वारा न निर्मित है, न शासित, फिर भी वे ऐसे पूजनीय परमदेवता अथवा जिन में आस्था रखते हैं जो मायाजाल तथा सभी विकारों से पूर्णतः मुक्त हैं और जो सर्वश होने के कारण और अपने सभी कर्मों को नष्ट कर चुकने के कारण परिपूर्ण अवस्था पर पहुंच गये हैं। "22
39
अतः ईश्वर के स्थान पर मंदिरों में जिनों की मूर्तियां होती हैं और उनकी पूजा की जाती है । परन्तु जिन सांसारिक स्तर से ऊपर उठे हुए होते हैं, इसलिए ये वस्तुतः लोगों की प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं दे सकते। शासन आदि को देखने वाले स्थायिक देवता ही प्रार्थनाओं को सुनते और उनका उत्तर देते हैं । और, मंदिरों के निर्माण का औचित्य इसी अर्थ में है। मंदिरों में जो संस्कारयुक्त पूजा होती है और जिनों की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं, उनके पीछे जैनों की गहन आस्था यह है कि जिनों के धर्म का पालन करना ही उनकी पूजा का सर्वोत्तम तरीका है ।
समापन करते हुए हम कह सकते हैं कि जैन 'अनीश्वरवाद', आत्मा के अस्तित्व से इनकार किये बिना और विश्व निर्माता को स्वीकार किये बिना, प्रत्येक व्यक्ति को उसके भाग्य के लिए जिम्मेदार ठहराता है और मानता है कि इस विश्व की प्रत्येक वस्तु अनन्तकालिक है और केवल नैतिक आचरण से ही ahirror सुख मिल सकता है।
11. देखिये, एस० एम० दासगुप्त, पूर्वी० पू० 204-206
12. 'इन्सासपिडिया मॉफ रिलिजन एन्ड एक्स 11, 187