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________________ . जैन दर्शन और जनों को अनुकर्ता समझने की बजाय यही मानना उचित होगा कि भारतीय जनता के धार्मिक विकास के अनवरत एवं अप्रतिहत प्रभाव के अन्तर्गत ही इन दोनों सम्प्रदायों ने स्वतंत्र रूप से इस प्रथा को अपनाया है। इस प्रथा का श्रेष दोनों धर्मों के सामान्य अनुवायियों को दिया जाता है और इसमें भारतीय जनता की गहरी धार्मिक भावना ने निश्चय ही महत्त्व की भूमिका अदा की होगी। यह बड़े संतोष की बात है कि दासगुप्त भी हमारे मत का समर्थन करते हैं। वे लिखते हैं : "इस नई व्यवस्था के मार्गदर्शकों को संभवतः या धर्म तथा उपनिषदों से सुझाव मिले हैं और इन्होंने अपनी प्रणालियों का निर्माण स्वतन्त्र रूप से अपने ही यथोचित चितन से किया है।"" याकोबी का भी मत है: "बौद्ध और जैन धमों का विकास ब्राह्मण धर्म से हुमा है । धार्मिक जागरण से अकस्मात् इनका जन्म नहीं हुआ है, बल्कि लम्बे समय से चले आते धार्मिक आन्दोलन ने इनके लिए रास्ता तैयार किया है। यह एक रोचक बात है कि इलियट जैसे विद्वान भी, जिनकी सहानुभूति जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म के साथ अधिक है, इस मत का समर्थन करते हैं कि दोनों ही नास्तिक धर्मों के स्रोत ब्राह्मण धर्म में है। महत्त्व की बात यह है कि इन दोनों धर्मों की उत्पत्ति पर विचार करते हुए वह स्वीकार करते हैं कि जैन धर्म का जन्म पहले हुआ है, यद्यपि वह बौद्ध धर्म की विशेष स्तुति करते हैं । वह लिखते हैं : "दोनों धर्म एक ऐसे आन्दोलन से पैदा हुए हैं जो ईसा पूर्व छठी सदी में भारत के कुछ प्रदेशों में तथा प्रमुखतः उच्च वर्ग के बीच सक्रिय था । इन सम्प्रदायों में जिनमें से अनेक की जन्म होते ही मृत्यु हो गयी, जैन सम्प्रदाय थोड़ा अधिक प्राचीन है, परन्तु बौद्ध धर्म श्रेष्ठतर या और इसमें बौद्धिक तथा नैतिक दृष्टि से अधिक आकर्षण था । उस समय प्रचलित धार्मिक प्रथाओं एवं सिद्धान्तों से गौतम ने एक खूबसूरत फूलदान का निर्माण किया, और महावीर ने एक उपयोगी तथा टिका घट का ।" __ वेबर ने लिखा है कि जैनों के पंचयाम (पंचमहावत)और बौद्धों के पंचसंवर में अद्भुत समानता है। इसी प्रकार, विडिश ने बनों के महावतों की तुलना बोडों के 'दस धर्माचरणों' से की है। इन समानतामों को देखते हुए हमें मानना पड़ता है कि एक सम्प्रदाय ने दूसरे का अनुकरण किया है, परन्तु यह बताना मुश्किल काम है कि ऋणी बौद्ध है या जैन । . विश्व इतिहास के काल-विभाजन के क्षेत्र में भी दोनों सम्प्रदायों में समानता 13. वही, भूमिका, पृ.xi 14. पूर्वोल्मिदित, पण प्रथम, 1.120 । 15. 'जैन सूत्राज', प्रथम भाग, भूमिका, पु. xxxii 16. पूर्वो०, बप्रथम, पु. 122-123
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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