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क्या जैन धर्म बौद्ध धर्म की एक शाखा है ?
परन्तु कवी का मत है कि, यह अनुमान न्यायसंगत नहीं है। यदि इन उपा fat के इनके व्युत्पत्ति संगत अर्थों से परे कोई विशेष वर्ष रहे होते या इन्हें कोई विशेष महत्व प्राप्त हो गया होता, तो दो ही बातें होती इन्हें स्वीकारा जाता या नकारा जाता । याकोबी के मतानुसार, यह बात असंभव है कि जिस शब्द को विशेष अर्थ प्राप्त हो चुका है (यहां हमारे संदर्भ में, बौद्धों के हाथों) उसे जैनों ने अपनाकर उसके मूल अर्थ में ही प्रयुक्त किया होगा ।"
याकोबी आगे कहते हैं कि इससे जिस एकमात्र नतीजे पर हम पहुंचते हैं, वह यह है कि सभी कालों में महापुरुषों के लिए सम्माननीय विशेषणों एवं अभिधानों का व्यवहार होता रहा है। सभी सम्प्रदायों ने इन शब्दों का अपने मूल अ में उपाधियों के लिए उपयोग किया है। कुछ शब्दों का धर्म-संस्थापकों के नामों के लिए भी इस्तेमाल हुआ है। शब्द का चुनाव या तो उसके उपयुक्त अर्थ के आधार पर हुआ है या अन्य परिस्थिति के अनुरूप । अतः बौद्ध तथा जैन धर्मो द्वारा अपनायी गई एक-सी शब्दावली के बारे में यही निष्कर्ष निकलता है कि शब्दों को अपनाने के मामले में बौद्ध और जैन एक-दूसरे के प्रतिद्व ंद्वी थे ।"
जैनों ने बौद्धों का 'अनुकरण' किया है, इस विवाद के समर्थन में दोनों धर्मों के बीच एक और समानता वरशायी गयी है। दोनों धर्मों के अनुयायी अपने 'भगवानों' की मंदिरों में मूर्तियां स्थापित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं । इस संदर्भ में यह जानना जरूरी है कि जहां मूर्तियों को स्थापित करने की व्यवस्था जैन परम्परा के अनुरूप थी, वहां बौद्ध धर्म की मूल शिक्षाओं में इस व्यवस्था को नकारा गया। । अतः, किसी एक ने दूसरे का अनुकरण किया ही है, तो मूर्ति स्थापना के मामले में जैनों ने बौद्धों का नहीं, बल्कि बौद्धों ने ही जैनों का अनुकरण किया होगा ।
परन्तु सचाई यही है कि मूल बौद्ध ग्रन्थों में बुद्ध की मूर्तिपूजा के लिए मनाही है, और विशुद्ध जैन परम्परा भी मानव की मूर्तिपूजा का अनुमोदन नहीं करती । याकोबी कहते हैं कि जैन तथा बौद्ध धर्म की उत्पत्ति को सिद्ध करने के लिए उनके urist की मूर्तिपूजा के प्रमाण देने की बजाय भारतवासियों की उच्चतर धार्मिक चेतना की ओर निर्देश करना ही उचित एवं न्यायसंगत होगा। उनका मत है कि सामान्यतः लोगों ने रूक्ष देवी-देवताओं एवं दानवों के स्थान पर एक उतर धर्म की आवश्यकता महसूस की और भारत के धार्मिक विकास की भक्ति के रूप में मुक्ति का एक महान पंच मिल गया । अतः बौद्धों को आविष्कर्ता
11. 'जैन समाज, अनुवाद, (दिल्ली : मोतीवाल बनारसीदास, 1964), नाग, भूमिका, पृ० xixxx
12. agt, yfirer, q• xx-xxi