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स्यादवाद
2. यह कथन कि "घट नहीं है", पहले कथन का विरोधी नहीं है । केवल परस्पर-विरोधी कथनों में ही हमें पूर्ण मतभेद दिखाई देता है; अतः जब हम एक कथन की सत्यता का दावा करते हैं, तो दूसरे की असत्यता स्पष्ट हो जाती है। इसी प्रकार, एक को असत्य घोषित करने पर दूसरे की सत्यता स्पष्ट हो जाती है। अकसर प्रथम और दूसरे कथनों के बीच के मतभेद को परस्पर-विरोधी समझा जाता है, और इसलिए मान लिया जाता है कि, यह कहना कि दोनों कथन "घट है" और "घट नहीं है" सत्य हैं, अस्पष्ट और अतार्किक है। तात्पर्यं यह कि, यदि घट का अस्तित्व है, तो इसके अस्तित्व से इनकार नहीं किया जा सकता; और यदि घट का अस्तित्व नहीं है तो इसके अस्तित्व का बाबा नहीं किया जा सकता ।
दूसरे कथन में, जहां तक विशिष्ट गुणों का सम्बन्ध है, घट के अस्तित्व से इनकार नहीं किया गया है। इनकार तभी किया जाता है, जब ऐसे गुणों के बारे में दावा किया जाता है जो स्पष्ट रूप से विद्यमान नहीं हैं। सुस्पष्ट शब्दों में, "घट का अस्तित्व नहीं है" का अर्थ यह नहीं कि "घट के रूप में घट का अस्तित्व नहीं" । इसका अर्थ केवल इतना ही है कि घट का अस्तित्व पट या अन्य किसी वस्तु के रूप में नहीं है ।
3. और 4. तीसरा और चौथा कथन - "घट हो सकता है और नहीं भी हो सकता है" और "घट अनिर्वचनीय हो सकता है" स्पष्टतः इस जैनमत के द्योतक हैं कि वस्तु जगत् जटिल है, इसलिए इसे इसके विविध गुणों की दृष्टि से देखा जाय, तो हम इसके गुणों को संयुक्त रूप से प्रस्तुत कर ही सकते हैं। उदाहरणार्थ, घट के अस्तित्व तथा अनस्तित्व के दो गुणों के संदर्भ में : तीसरे और चौथे कथन में दो पर्यायों - अस्तित्व तथा अनस्तित्व — के संयोजन को दो भिन्न तरीकों से प्रस्तुत किया गया है।
तीसरे कथन में क्रमश: दो पर्यायों को प्रस्तुत किया गया है। "घट है और नहीं भी है, " इस कथन में प्रथम अंश घट के अपने एक गुण, इस स्थिति में अस्तित्व के 'गुण', की दृष्टि से सत्य है । इस कथन का दूसरा अंश "नहीं है" अन्य गुणों के अनस्तित्व की दृष्टि से सत्य है। तीसरे मिश्रित कथन के इन दो अशों को क्रमशः ज्ञापित किया जाय, तो ये वस्तु-जगत् के बारे में स्पष्ट जानकारी दे सकते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस तीसरे कथन में दो क्रमिक गुणों का संयुक्त रूप से प्रतिज्ञापन किया गया है।
चौer कथन "घट अनिर्वचनीय है" इस मान्यता पर आधारित है कि इसकी दोनों अवस्थाओं पर एक साथ ध्यान देना मनोवैज्ञानिक और तार्किक दृष्टि से असंभव है । अस्तित्व और अनस्तित्व एक-दूसरे से भिन्न होने के कारण एक साथ ही वस्तु पर आरोपित नहीं हो सकते। इसलिए अस्तित्व तथा