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जैन दर्शन
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2. द्रव्य नहीं भी हो सकता है (स्याद् नास्ति द्रव्यम्) 3. द्रव्य हो सकता है और नहीं भी हो सकता है (स्याद् अस्ति च नास्ति
च द्रव्यम्) 4. द्रव्य अनिर्वचनीय हो सकता है (स्याद् अवक्तव्यं द्रव्यम्) 5. द्रव्य हो सकता है और अनिर्वचनीय भी हो सकता है (स्याद् अस्ति च
अवक्तव्यं द्रव्यम्) 6. द्रव्य नहीं हो सकता है और अनिर्वचनीय भी हो सकता है (स्याद्
नास्ति च अवक्तव्यं द्रव्यम्) 7. द्रव्य हो सकता है, नहीं भी हो सकता है और अनिर्वचनीय भी हो ___सकता है (स्याद् अस्ति च नास्ति च अवक्तव्यं द्रव्यम्)
चूंकि विश्व की प्रत्येक वस्तु द्रव्यमय होती है, इसलिए हम इन सात तर्कवाक्यों की एक विशेष वस्तु द्वारा व्याख्या करेंगे। जैन दार्शनिकों का अनुकरण करते हुए हम घट को उदाहरण-स्वरूप लेंगे। इन तर्कवाक्यों का विश्लेषण आरंभ करने के पहले यह जानना उपयोगी होगा कि अस्ति और नास्ति शब्द क्रमश: विचारार्थ वस्तु के अस्तित्व तथा अनस्तित्व के द्योतक हैं।
1. यह कथन कि "घट हो सकता है" स्पष्टत: घट के अस्तित्व का परिचायक है । इस कथन में जो "हो सकता है" शब्द हैं, उनका अर्थ यह है कि यह कथन पूर्णतः सत्य नहीं है, यानी शेष अन्य कथनों की सत्यता के अभाव में यह सत्य नहीं है । यह कथन एक दृष्टि से, एक विशिष्ट नियोग की उपस्थिति की दृष्टि से ही वैध है। इस संदर्भ में जैन दार्शनिक चार प्रमुख नियोगों का उल्लेख करते हैं : द्रव्य, क्षेत्र, काल और पर्याय । जहां तक घट की बात है, यह मिट्टी या अन्य किसी द्रव्य का बना हो सकता है। जब हम घट को द्रव्य मिट्टी की दृष्टि से देखते हैं : यदि यह मिट्टी से बना है, और केवल मिट्टी से ही बना है, तभी हम इसके अस्तित्व का दावा कर सकते हैं, अन्यथा नही। इसी प्रकार, घट के अस्तित्व का दावा उसका एक विशिष्ट क्षेत्र में अस्तित्व होने से ही किया जा सकता है, और ऐसे किसी क्षेत्र की दृष्टि से नहीं किया जा सकता जहां उसका अस्तित्व नहीं है। अन्य दो नियोगों की व्याख्या भी इसी प्रकार की जा सकती है। घट का अस्तित्व एक विशिष्ट कालावधि में विद्यमान होने की दृष्टि से ही सत्य है। इसके निर्माण के पहले घट नहीं था और इसके विनाश के बाद यह नहीं रहेगा । इन दृष्टियों से घट के अस्तित्व का दावा नहीं किया जा सकता। - इसी प्रकार, जब मिट्टी को विशेष प्रकार से डाला जाता ह और इसे विशेष आकार दिया जाता है, तभी हम कहते हैं "यह घट है", अन्यथा नहीं । यदि इसे भिन्न आकार दिया जाए, तो इसका अस्तित्व भिन्न पर्याय में होगा; हमारे द्वारा दावा किये गये पर्याय में न होगा।