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जैन दर्शन इसलिए हिन्दू धर्म में भी धर्म तथा अधर्म की धारणाओं पर तत्त्वमीमांसीव दृषि से विचार किया गया है। __माफाश: यह वास्तविक तत्त्व अनन्त दिक्-बिन्दुओं से निर्मित है। ये दिक्बिन्दु अगोचर रहते हैं। आकाश को अनादि-अनन्त और अनिर्मित माना गया है।
आकाश के दो भेद किये गये हैं :लोकाकाश और अलोकाकाश । लोका. काश में द्रव्य का अस्तित्व रहता है, और यह हमारे सीमित विश्व का परिचायक है। इस लोकाकाश के परे जो द्रव्यरहित शुद्ध बाह्य आकाश है उसे अलोकाकाश कहा गया है।
काल : यह अस्तिकाय अर्थात् बहुप्रदेशी नहीं है। इसका दिक् के साथ सहअस्तित्व है। वस्तुओं में होने वाले परिवर्तन कालावधि के द्योतक होते हैं। चूंकि परिवर्तन को वास्तविक माना गया है, इसलिए काल को भी अनिवार्यतः वास्तविक माना गया है।
काल के दो भेद हैं : व्यकाल और व्यवहारकाल । द्रव्यकाल की धारणा निरंतर एवं अनन्त काल-प्रवाह पर आधारित है और व्यवहारकाल वह है जो वस्तुओं में परिवर्तन कराने में सहायक होता है । इसलिए वस्तुओं में होनेवाले परिवर्तनों में ही यह लक्षित होता है। काल को अनादि माना गया है।
9. 'व्यसंग्रह' 19 10. वही, 21