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गर्भ-प्रवेश की स्थिति
गौतम स्वामी ने पूछा- भगवन्। जीव गर्भ में प्रवेश करते समय स-इन्द्रिय होता है अथवा अन् इन्द्रिय ?
भगवान् बोले- गौतम ! स इन्द्रिय भी होता है और अन्-इन्द्रिय भी । गौतम ने फिर पूछा -- यह कैसे भगवन् ?
भगवान् ने उत्तर दिया- द्रव्य इन्द्रिय की अपेक्षा वह अन् इन्द्रिय होता है और भाव- इन्द्रिय की अपेक्षा स- इन्द्रिय 1
इसी प्रकार दूसरे प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् ने बताया- - गर्भ में प्रवेश करते समय जीव स्थूल शरीर ( श्रदारिक, वैक्रिय, आहारक ) की अपेक्षा अ-शरीर और सूक्ष्म शरीर (तैजस, कार्मण) की अपेक्षा स शरीर होता है '3 1 गर्भ में प्रवेश पाते समय जीव का पहला श्राहार प्रोज और वीर्य होता है। गर्भ प्रविष्ट जीव का आहार मां के आहार का ही सार अंश होता है । उसके कवल- श्राहार नहीं होता । वह समूचे शरीर से आहार लेता है और समूचे शरीर से परिणत करता है। उसके उच्छवास निःश्वास भी सर्वात्मना होते हैं। उसके आहार, परिणमन, उच्छ्वास निःश्वास बार बार होते हैं" । बाहरी स्थिति का प्रभाव
जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
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गर्भ में रहे हुए जीव पर बाहरी स्थिति का आश्चर्यकारी प्रभाव होता है । किसी-किसी गर्भ-गत जीव में बैक्रिय-शक्ति ( विविध रूप बनाने की सामर्थ्य ) होती है । वह शत्रु सैन्य को देखकर विविध रूप बना उससे लड़ता है । उसमें अर्थ, राज्य, भोग और काम की प्रबल श्राकांक्षा उत्पन्न हो जाती है । कोईकोई धार्मिक प्रवचन सुन विरक्त बन जाता है । उसका धर्मानुराग तीव्र हो जाता है १५ ।
एक तीसरे प्रकार का जन्म है। उसका नाम है- उपपात । स्वर्ग और नरक में उत्पन्न होने वाले जीव उपपात जन्म वाले होते हैं। वे निश्चित जन्मकक्षों में उत्पन्न होते हैं और अन्तर- मुहूर्त्त में युवा बन जाते हैं। जन्म के प्रारम्भ में
. तीन प्रकार से पैदा होने वाले प्राणी अपने जन्म स्थानों में आते ही सबसे पहले आहार लेते हैं''। वे स्व-प्रायोग्य पुद्गलों का श्राकर्षण और संग्रह