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जैन दर्शन के मौलिक तत्व
४०५ चलता है, किन्तु उसके बाद यह पूरी जाति ही जैसे हमेशा के लिए तिरोहित सी हो गई।
सन् १९२८ में पुरातत्त्व का शोष-छात्र ( Research Sobolar ) हिंज हेक नब खोह-युगीन मानव के मित्ति-चित्र देखकर वापिस लौटा तो उसके मन में यह प्रश्न उठा कि क्या हम वर्तमान घोड़े की नश्ल को विकास के उल्टे क्रम पर बदलते हुए 'टरपन' की जाति में परिवर्तित नहीं कर सकते। प्रश्न क्या था, मानो एक चुनौती थी। उसने तुरन्त ही 'टरपन' जाति के पशुत्रों के अस्थिपंजर तथा गुफा चित्रों का गहन अध्ययन प्रारम्भ कर दिया। कई वर्ष तक वह इधर-उधर 'टरपन सम्बन्धी सही जानकारी प्राप्त करने के लिए ही मारा-मारा फिरता रहा। आखिर पन्द्रह वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद उसने यह पता लगा लिया कि 'टरपन एशिया के जंगली घोड़ों और आइसलैंड के पालतू घोड़ों के बहुत निकट का जन्तु रहा होगा। अतः उसने इन्हीं के संक्रमण द्वारा नई नश्ल पैदा करना शुरू किया। उसे अपने प्रयोग में सफलता भी मिली। इस परीक्षण की पांचवीं पीढी का पशु बिल्कुल प्रागैतिहासिक युग के 'टरपन' के समान था और इस नई नश्ल के १७ जानवर उसने अभी तक पैदा कर लिए हैं। -व० जून १९५३ २०-स्था० ४.१३७७ २१-भग ११७